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आराधना कथाकोश निन्दा न सह सके। कारण वे आहारके लिए शहर में चले गये थे, इसलिए उन्हें अपने आचार्य महाराजको आज्ञा मालूम न थी। मुनिने यह समझ कर, कि इन्हें अपनी विद्याका बड़ा अभिमान है, उसे मैं चूर्ण करूँगा, कहा-तुम व्यर्थ क्यों किसीकी बुराई करते हो? यदि तुममें कुछ विद्या हो, आत्मबल हो, तो मुझसे शास्त्रार्थ करो! फिर तुम्हें जान पड़ेगा कि बैल कौन है ? भला वे भी तो राजमंत्री थे, उसपर भी दुष्टता उनके हृदयमें कूट-कूटकर भरी हुई थी; फिर वे कैसे एक अकिंचन्य साधुके वचनोंको सह सकते थे ? उन्होंने मनिके साथ शास्त्रार्थ करना स्वीकार कर लिया। अभिमानमें आकर उन्होंने कह तो दिया कि हम शास्त्रार्थ करेंगे, पर जब शास्त्रार्थ हुआ तब उन्हें जान पड़ा कि शास्त्रार्थ करना बच्चोंकासा खेल नहीं है । एक ही मुनिने अपने स्याद्वादके बलसे बातकी बातमें चारों मंत्रियों को पराजित कर दिया। सच है-एक ही सूर्य सारे संसारके अन्धकारको नष्ट करनेके लिए समर्थ है।
विजय लाभकर श्रतसागरमनि अपने आचार्यके पास आये। उन्होंने रास्तेकी सब घटना आचार्यसे ज्योंकी त्यों कह सुनाई । सुनकर आचार्य खेदके साथ बोले-हाय ! तुमने बहुत ही बुरा किया, जो उनसे शास्त्रार्थ किया । तुमने अपने हाथोंसे सारे संघका घात क्रिया, संघकी अब कुशल नहीं है । अस्तु, जो हुआ, अब यदि तुम सारे संघकी जीवन रक्षा चाहते हो, तो पीछे जाओ और जहाँ मंत्रियों के साथ शास्त्रार्थ हुआ है, वहीं जाकर कायोत्सर्ग ध्यान करो । आचार्यकी आज्ञाको सुनकर श्रुतसागर मुनिराज जरा भी विचलित नहीं हुए। वे संघकी रक्षाके लिए उसी समय वहाँसे चल दिये और शास्त्रार्थकी जगहपर आकर मेरुकी तरह निश्चल हो बड़े धैर्यके साथ कायोत्सर्ग ध्यान करने लगे।
शास्त्रार्थमें मुनिसे पराजित होकर मंत्री बड़े लज्जित हुए। अपने मानभंगका बदला चुकानेका विचार कर मुनिवधके लिये रात्रिके समय वे चारों शहरसे बाहर हुए। रास्तेमें उन्हें श्रुतसागर मुनि ध्यान करते हुए मिले। पहले उन्होंने अपने मानभंग करनेवालेहीको परलोक पहँचा देना चाहा। उन्होंने मुनिको गर्दन काटने को अपनी तलवारको म्यानसे खींचा और एक ही साथ उनका काम तमाम करनेके विचार करनेके विचारसे उनपर वार करना चाहा कि, इतनेमें मुनिके पुण्य प्रभावसे पुरदेवीने आकर उन्हें तलवार उठाये हुए ही कोल दिये।
प्रातःकाल होते ही बिजलीकी तरह सारे शहर में मंत्रियोंको दुष्टताका
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