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आराधना कथाकोश
भगवान की पूजा की है वह भी तुम्हें कल्याणकी देनेवाली हो ।
देवी, तुमने जिस संसार श्रेष्ठ और संसार समुद्रसे पार करनेवाले अमूढदृष्टि अंगको ग्रहण किया है, उसकी मैंने नाना तरहसे परीक्षा की, पर उसमें तुम्हें अचल पाया। तुम्हारे इस त्रिलोकपूज्य सम्यक्त्वकी कौन प्रशंसा करनेको समर्थ है ? कोई नहीं । इस प्रकार गुणवती रेवती रानीकी प्रशंसा कर और उसे सब हाल कहकर क्षुल्लक अपने स्थान चले गए । इसके बाद वरुण नृपति और रेवती रानीका बहुत समय सुखके साथ बीता। एक दिन राजाको किसी कारणसे वैराग्य हो गया है । वे अपने शिवकीर्ति नामक पुत्रको राज्य सौंपकर और सब मायाजाल तोड़कर तपस्वी बन गए । साधु बनकर उन्होंने खूब तपश्चर्या की और आयुके अन्तमें समाधिमरण कर वे माहेन्द्रस्वर्ग में जाकर देव हुए ।
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जिनभगवान् की परम भक्त महारानी रेवतो भी जिनदीक्षा ग्रहण कर और शक्ति के अनुसार तपश्चर्या कर आयुके अन्त में ब्रह्मस्वर्ग में जाकर महर्द्धि देव हुई ।
भव्य पुरुषो, यदि तुम भी स्वर्ग या मोक्ष सुखको चाहते हो, तो जिस तरह श्रीमती रेवती रानीने मिथ्यात्व छोड़ा उसी तरह तुम भी मिथ्यात्वको छोड़कर स्वर्ग- मोक्षके देनेवाले, अत्यन्त पवित्र और बड़े-बड़े देव, विद्याधर, राजा महाराजाओंसे भक्तिपूर्वक ग्रहण किए हुए जैनधर्मका आश्रय स्वीकार करो ।
१०. जिनेन्द्रभक्तकी क्रथा
स्वर्ग-मोक्षके देनेवाले श्रीजिनभगवान्को नमस्कार कर मैं जिनेन्द्रभक्त की कथा लिखता हूँ, जिन्होंने कि सम्यग्दर्शनके उपगूहन अंगका पालन किया था ।
नेमिनाथ भगवान् के जन्मसे पवित्र और दयालु पुरुषोंसे परिपूर्ण सौराष्ट्र देश के अन्तर्गत एक पाटलिपुत्र नामका शहर था। जिस समयको कथा है, उस समय उसके राजा यशोध्वज थे । उनको रानीका नाम सुसीमा था । वह बड़ी सुन्दर थी । उसके एक पुत्र था । उसका नाम था
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