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आराधना कथाकोश
दिनके लिये था । इसलिये अब जैसा कुछ हो, मैं तो जीवन पर्यन्त ही उसे पालुंगी । मैं अब ब्याह नहीं करूँगी। ___ अनन्तमतीकी बातोंसे उसके पिताको बड़ी निराशा हुई; पर वे कर भी क्या सकते थे। उन्हें अपना सब आयोजन समेट लेना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अनन्तमतोके जोवनको धार्मिक-जीवन बनानेके लिये उसके पठनपाठनका अच्छा प्रबन्ध कर दिया। अनन्तमती भी निराकुलतासे शास्त्रोंका अभ्यास करने लगी।
इस समय अनन्तमती पूर्ण युवतो है। उसकी सुन्दरताने स्वर्गीय सुन्दरता धारण को है। उसके अङ्ग-अङ्गसे लावण्यसुधाका झरना बह रहा है । चन्द्रमा उसके अप्रतिम मुखको शोभाको देखकर फीका पड़ रहा है और नखोंके प्रतिबिम्बके बहानेसे उसके पावों में पड़कर अपनो इज्जत बचा लेनेके लिये उससे प्रार्थना करता है। उसकी बड़ी-बड़ी और प्रफल्लित आँखोंको देखकर बेचारे कमलोंसे मुख भो ऊँचा नहीं किया जाता है । यदि सच पूछो तो उसके सौन्दर्यको प्रशंसा करना मानों उसको मर्यादा बाँध देना है, पर वह तो अमर्याद है, स्वर्गको सुन्दरियोंको भी दुर्लभ है ।
चैत्रका महिना था । एक दिन अनन्तमतो विनोदवश हो, अपने बगीचे में अकेली झलेपर झल रही थी। इसी समय एक कुण्डलमंडित नामका विद्याधरोंका राजा, जो कि विद्याधरोंकी दक्षिणश्रेणीके किन्नरपुरका स्वामी था, इधर ही होकर अपनी प्रियाके साथ वायुयानमें बैठा हुआ जा रहा था। एकाएक उसकी दृष्टि झूलती हुई अनन्तमती पर पड़ी उसकी स्वर्गीय सुन्दरताको देखकर कुण्डलमंडित कामके बाणोंसे बरी तरह बींधा गया। उसने अनन्तमतीकी प्राप्तिके बिना अपने जन्मको व्यर्थ समझा । वह उस बेचारी बालिकाको उड़ा तो उसी वक्त ले जाता, पर साथमें प्रियाके होनेसे ऐसा अनर्थ करनेके लिये उसकी हिम्मत न पड़ी। पर उसे बिना अनन्तमतीके कब चैन पड़ सकता था ? इसलिये वह अपने विमानको शीघ्रतासे घर लौटा ले गया और वहाँ अपनी प्रियाको रखकर उसी समय अनन्तमतीके बगीचे में आ उपस्थित हुआ और बड़ी फुर्तीसे उस भोली बालिकाको उठा ले चला । उधर उसकी प्रियाको भी इसके कर्मका कुछ-कुछ अनुसन्धान लग गया था । इसलिये कुण्डलमंडित तो उसे घरपर छोड़ आया था, पर वह घरपर न ठहर कर उसके पीछे-पीछे हो चली। जिस समय कुण्डलमंडित अनन्तमतीको लेकर आकाशकी ओर जा रहा था, कि उसकी दृष्टि अपनी प्रिया पर पड़ी। उसे क्रोधके मारे लाल मुख
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