________________
४५४
आराधना कथाकोश कोड़ निन्यानवे सैन्या घर में, कोड़ छियाण्वे मेह लाया।
महल मनोरमा रतना सु जड़िया,
फूल डारी सेज बिछाइ ॥ तुम ही परिवारो। ७॥ चन्द्र, बदन, मग, लोचन वाला, केर गर्व मख लाया। केर गर्व सु आपो, सूपो, के, हर्ष, घणी वो मुंढ बोलो तुम ही परिवारी॥८॥
इन्द्र धनुष ज्यों जोवन बन कर, ' नेणा में काजल रण के,
मोर पतिजी थे हंस कर बोलो, गांठ हिये को खोलो।
तुम ही परिवारी ॥ ९ ॥ बारी वो जम्बू जी। किण रे पीवरियो, किण रे सासरियो पिया बिन कौन अधार ।
लोग हंसे म्हारो जोबन छीजे, संसारो में कुण बोले ।
तुम ही परिवारी ॥ १० ॥ बारी वो जम्बजी। चार कथा तो कामिनी कहिये, चार जम्बू जो कँवारा शील रतन में परख लीयो है...
कांच ने कहो कुण झेले । संसारी में कुण राचे ॥ __ तुम ही परिवारी॥ बारी वो जम्बूजी ।। ११ ॥ काम भोग महा दुखदाई, कड़वा, विष सु कुण खावे, मेवा मिश्री भोजन, तजकर निंबोलो ओ कुण चावै ।।
तुम ही परिवारी ।। बारी वो० जम्बूजी ।। १२ ।। संग जोड़े जम्बू दिक्षा लीनी, परभात हो धन जु चोरे । पांव न उठे जाय, जम्बू जी ने पूछे ।।
तुम ही परिवारी । बारी वो जम्बू जी ॥ १३ ।। एक विद्या तम याने देवा ओ जम्बूजी, दोय विद्यामान दीज्यो, जम्बूजी कहवे म्हांने क्या की,
विद्या संसारी में कुण राचे ॥
तुम ही परिवारो ।। बारी वो जम्बूजो ॥ १४ ।। आज न परणी चार लुगाई काँई रे तज्यो निरधारी, कोमल काया घर में माया, काँई रे तजो भोला भाई।
तुम ही परिवारी ॥ बारी वो जम्बूजी ।। १५ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org