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जम्बूस्वामीकी विनतो
जम्बूस्वामीकी विनती
राजगिरी नगरी का ओ वासी, घर में रिद्धि अभिलासी ।
सेठ अरदास जी रा कँवर जम्बूजी, धारण करल्यो ये माता तुम ही परिवारी || चार सगाई आई जी कँवर की,
सुन्दर रूप रिसाला, हाथ काम सब लिया जी । कँवर का शुद्ध मुहरत सावो कीनो तुमही परिवारी ॥ १ ॥
मथुरा जी में शोर उड़े है, नारी तो मंगल गावे । स्वामि सुदर्शन राजगिरि पधारा, लोग जु वन्दना आवे ॥ बारी वो जम्बु हाथ जोड़ कर केवे जी, जम्बु जी सुण लीज्यो मोरी माता । रण मत करज्यो
ढील न कीज्यो खीणी पल खीणी जावे | तुम्ही परिवारी ॥ बारी वो० ॥ ३ ॥
जी वैरागी तुम ही परिवारी ॥ २ ॥
बात अपूरब की सुनीजी, कँवर की सुण माता मुरझाई ।
दिक्षा अबार मत धारो रे जाया, बहु ये परण घर लावो ॥
तुम ही परिवारी ॥ बारी वो० जम्बूजी ॥ ४ ॥
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हाथ जोड़कर केवेजी,
जम्बूजी सुण लीज्यो ये मोरी माता ।
मन, तन, में तो शील रचो है, परणा कर काँई होस्यो राजी ॥
तुम ही परिवारी ॥ बारी वो जम्बूजी ॥ ५ ॥
माता का वचना से परण्या जम्बूजी, बहु घर आय पांय लागो
आज्ञा लेकर महल पधारी, ।
जम्बू जी कहते तुम आगी || तुम ही परिवारी० ॥ ६ ॥
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