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आराधना कथाकोश
कि मैंने पूर्व जन्मों में क्या-क्या अच्छे या बुरे कर्म किये हैं, जिनका मुझे यह फल भोगना पड़ा ? मुनि बोले- पुत्रि, सुन तुझे तेरे पूर्व जन्मका हाल सुनाता हूँ | तू पहले जन्म में ब्राह्मणकी लड़की थी। तेरा नाम नागश्री था। इसी राजघराने में तू बुहारी दिया करती थी । एक दिन मुनिदत्त नामके योगिराज महलके कोटके भीतर एक वायु रहित पवित्र गढ़े में बैठे ध्यान कर रहे थे । समय सन्ध्याका था। इसी समय तू बुहारी देती हुई इधर आई । तूने मूर्खतासे क्रोध कर मुनिसे कहा—ओ नंगे ढोंगी, उठ यहाँसे, मुझे झाड़ने दे । आज महाराज इसी महल में आवेंगे । इसलिए इस स्थानको मुझे साफ करना है। मुनि ध्यान में थे, इसलिए वे उठे नहीं; और न ध्यान पूरा होने तक उठ ही सकते थे । वे वैसेके वैसे ही अडिग बैठे रहे । इससे तुझे और अधिक गुस्सा आया । तूने तब सब जगहका कूड़ा-कचरा इकट्ठा कर मुनिको उससे ढँक दिया। बाद तू चली गई। बेटा तू तब मूर्ख थी, कुछ समझती न थी । पर तूने वह काम बहुत ही बुरा किया था । तू नहीं जानती थी कि साधु-सन्त तो पूजा करने योग्य होते हैं, उन्हें कष्ट देना उचित नहीं । जो कष्ट देते हैं वे बड़े मूर्ख और पापी हैं। अस्तु, सबेरे राजा आये । वे इधर होकर जा रहे थे । उनको नजर इस गढ़े पर पड़ गई । मुनिके साँस लेनेसे उन परका वह कूड़ाकचरा ऊँचा-नीचा हो रहा था । उन्हें कुछ सन्देहसा हुआ । तब उन्होंने उसी समय उस कचरे को हटाया। देखा तो उन्हें मुनि देख पड़े । राजाने उन्हें निकाल लिया । तुझे जब यह हाल मालूम हुआ और आकर तूने उन शान्तिके मन्दिर मुनिराजको पहलेसा ही शान्त पाया तब तुझे उनके गुणोंकी कीमत जान पड़ो । तू तब बहुत पछताई । अपने कर्मोंको तूने बहुत बहुत धिक्कारा । मुनिराजसे अपने अपराधकी क्षमा कराई । तब तेरी श्रद्धा उन पर बहुत हो हो गई । मुनिके उस कष्टके दूर करनेका तूने बहुत यत्न किया, उनकी औषधि को और उनको भरपूर सेवा की। उस सेवाके फलसे तेरे पापकर्मीको स्थिति बहुत कम रह गई। बहिन, उसी मुनि सेवाके फलसे तू इस जन्ममें धनपति सेठकी लड़की हुई । तूने जो मुनिको औषधिदान दिया था उससे तो तुझे वह सर्वोषधि प्राप्त हुई जो तेरे स्नानके जलसे कठिन से कठिन रोग क्षण-भर में नाश हो जाते हैं और मुनिको कचरेसे ढँककर जो उन पर घोर उपसर्ग किया था, उससे तुझे इस जन्म में झूठा कलंक लगा । इसलिये बहिन, साधुओं को कभी कष्ट देना उचित नहीं । किन्तु ये स्वर्ग या मोक्षसुखकी प्राप्तिके कारण हैं, इसलिए इनकी तो बड़ी भक्ति और श्रद्धासे
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