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सम्यग्दर्शनके प्रभावको कथा ३९१ सहित श्रेणिक सुखसे राज्य करने लगे। अब इसके आगेकी कथा लिखी जाती है
सिन्धु देशको विशाला नगरीके राजा चेटक थे। वे बड़े बुद्धिमान्, धर्मात्मा और सम्यग्दृष्टि थे। जिन भगवान् पर उनकी बड़ी भक्ति थी। उनकी रानीका नाम सुभद्रा था। सुभद्रा बड़ी पतिव्रता और सुन्दरी थी। इसके सात लड़कियाँ थीं। इनमें पहली लड़की प्रियकारिणो थो। इसके पुण्यका क्या कहना, जो इसका पुत्र संसारका महान् नेता तीर्थंकर हआ। दूसरी मृगावती, तीसरी सुप्रभा, चौथी प्रभावती, पाँचवीं चेलिनी, छठी ज्येष्ठा और सातवीं चन्दना थी। इनमें अन्तको चन्दनाको बड़ा उपसर्ग सहना पड़ा। उस समय इसने बड़ी वीरतासे अपने सतीधर्मकी रक्षा की।
चेटक महाराजका अपनी इन पुत्रियों पर बड़ा प्रेम था। इससे उन्होंने इन सबकी एक ही साथ तस्वीर बनवाई। चित्रकार बड़ा हुशियार था, सो उसने उन सबका बड़ा ही सुन्दर चित्र बनाया। चित्रपटको चेटक महाराज बड़ी बारीकीके साथ देख रहे थे। देखते हुए उनकी नजर चेलिनीकी जाँघ पर जा पड़ी, चेलिनीकी जाँघ पर जैसा तिलका चिह्न था, चित्रकारने चित्रमें भी वैसा ही तिलका चिन्ह बना दिया था। सो चेटक महाराजने ज्यों ही उस तिलको देखा उन्हें चित्रकार पर बड़ा गुस्सा आया । उन्होंने उसी समय उसे बुलाकर पूछा कि-तुझे इस तिलका हाल कैसे जान पड़ा । महाराजको क्रोध भरी आँखें देखकर वह बड़ा घबराया। उसने हाथ जोड़कर कहा-राजाधिराज, इस तिलको मैंने कोई छह सात बार मिटाया, पर में ज्यों ही चित्रके पास लिखनेको कलम ले जाता त्यों ही उसमेंसे रंगकी बूंद इसी जगह पड़ जाती। तब मेरे मनमें दृढ़ विश्वास हो गया कि ऐसा चिन्ह राजकुमारी चेलिनीके होना हो चाहिये और यही कारण है कि मैंने फिर उसे न मिटाया। यह सुनकर चेटक महाराज बड़े खुश हुए। उन्होंने फिर चित्रकारको बहुत पारितोषिक दिया । सच है बड़े पुरुषोंका खुश होना निष्फल नहीं जाता।
अबसे चेटक महाराज भगवान्की पूजन करते समय पहले इस चित्रपटको खोलकर भगवान्की प्रतिमाके पास ही रख लेते हैं और फिर बड़ी भक्तिके साथ जिनपूजा करते रहते हैं। जिन पूजा सब सुखोंकी देनेवाली और भव्यजनोंके मनको आनन्दित करने वाली है।
एक बार चेटक महाराज किसी खास कारण वश अपनी सेनाको साथ लिये राजगृह आये। वे शहर बाहर बगीचेमें ठहरे । प्रातःकाल शौच मुख
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