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निह्न असल बातको छुपानेवालेको कथा
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करते हुए वे विपुलाचल पर महावीर भगवान् के समवशरण में गये, जो कि बड़ी शान्तिका देनेवाला था । भगवान् के दर्शन कर उन्हें बहुत शान्ति मिली । वन्दना कर भगवान्का उपदेश सुननेके लिये वे वहीं बैठ गये । श्वेतसन्दीव मुनि भी इन्हीं के साथ थे । वे आकर समवशरण के बाहर आतापन योग द्वारा तप करने लगे । भगवान् के दर्शन कर जब महामण्डलेश्वर श्रेणिक जाने लगे तब उन्होंने श्वेतसन्दीव मुनिको देखकर पूछाआपके गुरु कौन हैं, किनसे आपने यह दीक्षा ग्रहण की ? उत्तर में श्वेत संदीप मुनिने कहा- राजन्, मेरे गुरु श्रीवर्द्धमान् भगवान् हैं । इतना कहना था कि उनका सारा शरीर काला पड़ गया। यह देख श्रेणिकको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पीछे जाकर गणधर भगवान्से इसका कारण पूछा । उन्होंने कहा— श्वेतसन्दीव के असल गुरु हैं कालसंदीव, जो कि यहीं बैठे हुए हैं। उनका इन्होंने निह्नव किया - सच्ची बात न बतलाई । इसलिये उनका शरीर काला पड़ गया है । तब श्रेणिकने श्वेतसंदीव को समझा कर उनकी गलती उन्हें सुझाई और कहा - महाराज, आपकी अवस्थाके योग्य ऐसी बातें नहीं हैं। ऐसी बातों से पाप-बन्ध होता है । इसलिये आगे आप कभी ऐसा न करेंगे, यह मेरी आपसे प्रार्थना है । श्रेणिककी इस शिक्षाका श्वेतसंदीव मुनिके चित्त पर बड़ा गहरा असर पड़ा । वे अपनी भूल पर बहुत पछताये । इस आलोचनासे उनके परिणाम बहुत उन्नत हुए । यहाँ तक कि उसी समय शुक्लध्यान द्वारा कर्मोंका नाश कर लोकालोकका प्रकाशक केवलज्ञान उन्होंने प्राप्त कर लिया । वे सारे संसार द्वारा अब पूजे जाने लगे । अन्तमें अघातिया कर्मों को नष्ट कर उन्होंने मोक्षका अनन्त सुख लाभ किया । श्वेतसंदीव मुनिके इस वृत्तान्तसे भव्यजनोंको शिक्षा लेनी चाहिये कि वे अपने गुरु आदिका निह्नव न करें -- सच्ची बात छिपानेका यत्न न करें। क्योंकि गुरु स्वर्ग- मोक्षके देनेवाले हैं, इसलिये सेवा करने योग्य हैं ।
वे श्रीश्वेतसंदीव मुनि मेरे बढ़ते हुए संसारको भव भ्रमणकी शान्ति कर- मेरा संसारका भटकना मिटाकर मुझे कभी नाश न होनेवाला और अनन्त मोक्ष-सुख दें, जो केवलज्ञानरूपी अपूर्व नेत्रके धारक हैं, भव्यजनोंको हितकी ओर लगानेवाले हैं, देव, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि महापुरुषों द्वारा पूज्य हैं, और अनन्तचनुष्टय- अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यसे युक्त हैं तथा और भी अनन्त गुगोंके समुद्र हैं ।
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