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चाणक्यको कथा इसी पर मह धोये बैठा था। सो राजाज्ञा होते ही उसने एक पलभरका भी विलम्ब करना उचित न समझ मुनियोंके पेले जानेकी सब व्यवस्था फौरन जुटा दी। देखते-देखने वे सब मुनि घानीमें पेले दिये गये । बदला लेकर बालक मंत्रीकी आत्मा सन्तुष्ट हुई। सच है, जो पापी होते हैं, जिन्हें दुर्गतियोंमें दुःख भोगना है, वे मिथ्यात्वी लोग भयंकरसे भयंकर पाप करनेमें जरा भी नहीं हिचकते । चाहे फिर उस पापके फलसे उन्हें जन्म-जन्ममें भी क्यों न कष्ट सहना पड़े। जो हो, मुनिसंघ पर इस समय बड़ा हो घोर और दुःसह उपद्रव हुआ। पर वे साहसी धन्य हैं, जिन्होंने जबानसे चूं तक न निकाल कर सब कुछ बड़े साहसके साथ सह लिया । जोवनकी इस अन्तिम कसौटी पर वे खूब तेजस्वी उतरे। उन मुनियोंने शुक्लध्यानरूपी अपनी महान् आत्मशक्तिसे कर्मोंका, जो कि आत्माके पक्के दुश्मन हैं, नाश कर मोक्ष लाभ किया।
दिपते हुए सुमेरुके समान थिर, कर्मरूपी मैलको, जो कि आत्माको मलिन करनेवाला है, नाश करनेवाले और देवों, विद्याधरों, चक्रवतियों, राजों और महाराजों द्वारा पूजा किये गये जिन मुनिराजोंने संसारका नाश कर मोक्ष लाभ किया वे मेरा भी संसार-भ्रमण मिटावें ।
७३. चाणक्यकी कथा
देवों द्वारा पूजा किये जानेवाले जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर चाणक्यको कथा लिखी जाती है।।
पाटलिपुत्र या पटनाके राजा नन्दके तोन मंत्री थे। कावी, सुबन्धु और शकटाल ये उनके नाम थे। यहीं एक कपिल नामका पुरोहित रहता था। कपिलको स्त्रोका नाम देविला था। चाणक्य इन्हींका पुत्र था । यह बड़ा बुद्धिमान् और वेदोंका ज्ञाता था ।
एक बार आस-पासके छोटे-मोटे राजोंने मिलकर पटना पर चढ़ाई कर दी । कावी मंत्रीने इस चढ़ाईका हाल नन्दसे कहा । नन्दने घबरा कर मंत्रीसे कह दिया कि जाओ जैसे बने उन अभिमानियों को समझा-बुझाकर
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