________________
२९८
आराधना कथाकोश
कुछ लोगोंने गुरुदत्तसे जाकर प्रार्थना की कि राजाधिराज, इस पर्वत पर एक बड़ा भारी हिंसक सिंह रहता है। उससे हमें बड़ा कष्ट है । इसलिए आप कोई ऐसा उपाय कीजिए, जिससे हम लंका कष्ट दूर हो ।
गुरुदत्त उन लोगोंको धीरज बँधाकर आप अपने कुछ वीरोंको साथ लिये पर्वत पर पहुँचा । सिंहको उसने सब ओरसे घेर लिया । पर मौका पाकर वह भाग निकला और जाकर एक अँधेरी गुफा में घुसकर छिप गया । गुरुदत्तने तब इस मौके को अपने लिए और भी अच्छा समझा । उसने उसी समय बहुत से लकड़े गुहा में भरवाकर सिंहके निकलनेका रास्ता बन्द कर • दिया । और बाहर गुफा के मुँह पर भी एक लकड़ोंका ढेर लगवा कर उसमें आग लगवा दी । लकड़ों की खाकके साथ-साथ उस सिंहकी भी देखते-देखते खाक हो गई । सिंह बड़े कष्ट के साथ मरकर इसी चन्द्रपुरीमें भरत नामके ब्राह्मणकी विश्वदेवी स्त्रीके कपिल नामका लड़का हुआ । यह जन्मसे ही बड़ा क्रूर हुआ और यह ठीक भी है कि पहले जैसा संस्कार होता है, वह दूसरे जन्ममें भी आता है ।
इसके बाद गुरुदत्त अपनी प्रियाको लिए राजधानीमें लौट आया । दोनों नव दम्पती बड़े सुखसे रहने लगे। कुछ दिनों बाद अभयमतीके एक पुत्रने जन्म लिया । इसका नाम रखा गया सुवर्णभद्र । यह सुन्दर था, सरलता और पवित्रताकी प्रतिमा था और बुद्धिमान् था । इसीलिये सब ही इसे बहुत प्यार करते थे। जब इसकी उमर योग्य हो गई और सब कामों में यह हुशियार हो गया तब जिनेन्द्र भगवान् के सच्चे भक्त इसके पिता गुरुदत्तने अपना राज्यभार इसे देकर आप वैरागी बन मुनि हो गये । इसके कुछ वर्षों बाद ये अनेक देशों, नगरों और गाँवों में धर्मोपदेश करते, भव्य जनों को सुलटाते एक बार चन्द्रपुरीकी ओर आये ।
एक दिन गुरुदत्त मुनि कपिल ब्राह्मणके खेत पर कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे । इसी समय कपिल घर पर अपनी खोसे यह कह कर, कि प्रिये, मैं खेत पर जाता हूँ, तुम वहाँ भोजन लेकर जल्दी आना, खेत पर आ गया । जिस खेत पर गुरुदत्त मुनि ध्यान कर रहे थे, उसे तब जोतने योग्य न समझ वह दूसरे खेत पर जाने लगा । जाते समय मुनिसे वह यह कहता गया कि मेरी स्त्री यहाँ भोजन लिए हुये आवेगी सो उसे आप कह दीजियेगा कि कपिल दूसरे खेत पर गया | तू भोजन वहीं ले जा । सच है, मूर्ख लोग महामुनिके मार्ग को न समझ कर कभी-कभी बड़ा ही अनर्थ कर बैठते हैं । इसके बाद जब कपिलको स्त्री भोजन लेकर खेत पर आई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org