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सुकौशल मुनिकी कथा
२७१ वयःप्राप्त होने पर सुकोशलका अच्छे-अच्छे घरानेको कोई बत्तोस कन्या-रत्नोंसे ब्याह हुआ। सुकोशलके दिन अब बड़े ऐशो आरामके साथ बीतने लगे । माताका उस पर अत्यन्त प्यार होनेसे नित नई वस्तुएँ उसे प्राप्त होती थीं। सैकड़ों दास-दासियाँ उसकी सेवामें सदा उपस्थित रहा करती थीं। वह जो कुछ चाहता वह कार्य उसकी आँखोंके इशारे मात्रसे होता था। सूकोशलको कभी कोई बातके लिए चिन्ता न करनी पडतो थी। सच है, जिनके पुण्यका उदय होता है उन्हें सब सुख-सम्पत्ति सहजमें प्राप्त हो जाती हैं।
एक दिन सुकोशल, उसकी माँ, उसको स्त्री और उसको धायके साथ महल पर आ बैठा अयोध्याको शोभा तथा मनको लुभानेवाली प्रकृति देवीको नई-नई सुन्दर छटाओंको देख-देखकर बड़ा खुश हो रहा था। उसकी दृष्टि कुछ दूर तक गई। उसने एक मुनिराजको देखा । ये मुनि इसके पिता सिद्धार्थ ही थे। इस समय कई अन्य नगरों और गांवोंमें विहार करते हुए ये आ रहे थे। इनके वदन पर नाममात्रके लिए भी वस्त्र न देखकर सुकोशल बड़ा चकित हुआ। इसलिए कि पहले कभी उसने मुनिको देखा नहीं था। उनका अजब वेष देखकर सुकोशलने माँसे पूछा-माँ, यह कौन है ? सिद्धार्थको देखते ही जयावतीको आँखोंमें खून बरस गया। वह कुछ घृणा और कुछ उपेक्षाको लिए बोली-बेटा, होगा कोई भिखारी, तुझे इससे क्या मतलब ! परन्तु अपनी माँके इस उत्तरसे सूकोशलको सन्तोष नहीं हुआ। उसने फिर पूछा-माँ, यह तो बड़ा खूबसूरत और तेजस्वी देख पड़ता है। तुम इसे भिखारी कैसे बताती हो ? जयावतीको अपने स्वामी पर ऐसी घृणा करते देख सुकोशलकी धाय सुनन्दासे न रहा गया । वह बोल उठो-अरी ओ, तू इन्हें जानतो है कि ये हमारे मालिक हैं। फिर भो त इनके सम्बन्धमें ऐसा उलटा सुझा रही है ? तुझे यह योग्य नहीं । क्या हो गया यदि ये मुनि हो गये तो ? इसके लिए क्या तुझे इनकी निन्दा करनी चाहिए ? इसकी बात पूरी भी न हो पाई थी कि सुकोशलकी माँने उसे आँख के इशारेसे राककर कह दिया कि चुन क्यों नहीं रह जाती। तुझसे कौन पूछता है, जो बीच में ही बोल उठो ! सच है, दुष्ट स्त्रियोंके मन में धर्म-प्रेम कभी नहीं होता। जैसे जलती हुई आगका बीचका भाग ठंडा नहीं होता।
सुकोशल ठीक तो न समझ पाया, पर उसे इतना ज्ञान हो गया कि माँने मुझे सच्ची बात नहीं बतलाई । इतनेमें रसोइया सुकोशलको भोजन
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