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सुकुमाल मुनिको कथा
२६९ सुकुमाल मुनि अच्युतस्वर्ग में देव होकर अनेक प्रकारके दिव्य सुखोंको भोगते हैं और जिनभगवान्की भक्तिमें सदा लोन रहते हैं। सुकुमाल मुनिको इस वीर मृत्युके उपलक्षमें स्वर्गके देवोंने आकर उनका बड़ा उत्सव मनाया । 'जय जय' शब्द द्वारा महाकोलाहल हुआ। इसो दिनसे उज्जैनमें महाकाल नामके कुतोर्थको स्थापना हुई, जिसके कि नामसे अगणित जोव रोज वहाँ मारे जाने लगे। और देवोंने जो सुगन्ध जलकी वर्षा की थी, उससे वहाँकी नदो गन्धवती नामसे प्रसिद्ध हुई ।
जिसने दिनरात विषय-भोगोंमें हो फँसे रहकर अपनी सारी जिन्दगी बिताई, जिसने कभी दुःखका नाम भी न सुना था, उस महापुरुष सूकुमाल ने मुनिराज द्वारा अपनी तीन दिनको आयु सुनकर उसी समय माता, स्त्री, पुत्र आदि स्वजनोंको, धन-दौलतको और विषय-भोगोंको छोड़-छाड़कर जिनदीक्षा ले लो और अन्त में पशुओं द्वारा दुःसह कष्ट सहकर भी जिसने बड़ो धीरज और शान्तिके साथ मृत्युको अपनाया। वे सुकुमाल मुनि मुझे कर्तव्यके लिए कष्ट सहनेको शक्ति प्रदान करें।
५८. सुकौशल मुनिकी कथा जगपवित्र जिनेन्द्र भगवान्, जिनवाणी और गुरुओंको नमस्कार कर सुकौशल मुनिकी कथा लिखो जाती है। ___अयोध्यामें प्रजापाल राजाके समयमें एक सिद्धार्थ नामके नामी सेठ । हो गये हैं। उनके कोई बत्तीस अच्छी-अच्छो सुन्दर स्त्रियाँ थों। पर खोटे भाग्यसे इनमें किसीके कोई सन्तान न थी। स्त्रो कितनी भो सुन्दर हो, गुणवती हो, पर बिना सन्तानके उसको शोभा नहीं होती। जैसे बिना फल-फूलके लताओंकी शोभा नहीं होती। इन स्त्रियोंमें जो सेठकी खास प्राणप्रिया थी, जिस पर कि सेठ महाशयका अत्यन्त प्रेम था, वह पुत्र प्राप्तिके लिए सदा कुदेवोंकी पूजा-मानता किया करती थी। एक दिन उसे कुदेवोंकी पूजा करते एक मुनिराजने देख लिया। उन्होंने तब उससे कहा-बहिन, जिस आशासे तू इन कुदेवोंकी पूजा करती है वह आशा
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