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सुकुमाल मुनिको कथा
२६३ नामके पर्वत पर पहुँचे। वहाँ तपस्या द्वारा घातिया कर्मों का नाश कर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया, और त्रिलोकपूज्य हो अन्तमें बाकोके कर्मों का भी नाश कर परम सुखमय, अक्षयानन्त मोक्ष लाभ किया। वे दोनों केवलज्ञानी मुनिराज मुझे और आप लोगोंको उत्तम सुखकी भीख दें।
अवन्ति देशके प्रसिद्ध उज्जैन शहरमें एक इन्द्रदत्त नामका सेठ है। वह बड़ा धर्मात्मा और जिन भगवान्का सच्चा भक्त है। उसकी स्त्रीका नाम गुणवती है। वह नामके अनुसार सचमुच गुणवती और बड़ी सुन्दरी है। सोमशर्माका जीव, जो अच्युत स्वर्गमें देव हआ था वह, वहाँ अपनी आयु पूरी कर पुण्यके उदयसे इस गुणवती सेठानीके सुरेन्द्रदत्त नामका सुशील और गुणो पुत्र हुआ । सुरेन्द्र दत्तका ब्याह उज्जैन हीमें रहनेवाले सुभद्र सेठकी लड़की यशोभद्राके साथ हुआ। इनके घरमें किसी बातकी कमी नहीं थी। पूण्यके उदयसे इन्हें सब कुछ प्राप्त था। इसलिए बड़े सुखके साथ इनके दिन बीतते थे। ये अपनी इस सुख अवस्थामें भी धर्मको न भूलकर सदा उसमें सावधान रहा करते थे।
एक दिन यशोभद्राने एक अवधिज्ञानी मुनिराजसे पूछा-क्यों योगिराज, क्या मेरी आशा इस जन्ममें सफल होगी ? मुनिराज यशोभद्राका अभिप्राय जानकर कहा-हाँ होगी, और अवश्य होगो । तेरे होनेवाला पुत्र भव्य मोक्षमें जानेवाला, बुद्धिमान् और अनेक अच्छे-अच्छे गुणोंका धारक होगा। पर साथ ही एक चिन्ताकी बात यह होगी कि तेरे स्वामी पुत्रका मुख देखकर ही जिनदीक्षा ग्रहण कर जायेंगे, जो दोक्षा स्वर्ग-मोक्षका सुख देनेवाली है। अच्छा, और एक बात यह है कि तेरा पुत्र भी जब कभी किसी जैन मुनिको देख पायेगा तो वह भी उसी समय सब विषयभोगोंको छोड़-छाड़कर योगी बन जायगा ।
इसके कुछ महीनों बाद यशोभद्रा सेठानीके पुत्र हुआ। नागश्रीके जीवने, जो स्वर्गमें महद्धिक देव हुआ था, अपनी स्वर्गको आयु पूरी हुए बाद यशोभद्राके यहाँ जन्म लिया। भाई-बन्धुओंने इसके जन्मका बहुत कुछ उत्सव मनाया। इसका नाम सुकुमाल रक्खा गया। उधर सुरेन्द्र पुत्रके पवित्र दर्शन कर और उसे अपने सेठ-पदका तिलक कर आप मुनि हो गया।
जब सुकुमाल बड़ा हुआ तब उसकी माँको यह चिन्ता हुई कि कहीं यह भी कभी किसी मुनिको देखकर मुनि न हो जाय, इसके लिए यशोभद्रा
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