________________
२५६
आराधना कथाकोश
पहुँच कर उसने कार्त्तवीर्य को युद्ध के लिए ललकारा। यद्यपि एक ओर कार्त्तवीर्य की प्रचण्डसेना थो और दूसरी ओर सिर्फ ये दो हो भाई थे; पर तब भी परशु विद्या प्रभावसे इन दोनों भाइयोंने ही कार्त्तवीर्यकी सार सेनाको छिन्न-भिन्न कर दिया और अन्त में कार्त्तवीर्यको मारकर अपने पिताका बदला लिया । मरकर पापके फलसे कार्त्तवीर्य नरक गया । सो ठीक ही है, पापियोंकी ऐसी गति होती ही है । उस तृष्णाको धिक्कार है जिसके वश हो लोग न्याय-अन्यायको कुछ नहीं देखते और फिर अनेक कष्टों को सहते हैं । ऐसे ही अन्यायों द्वारा तो पहले भी अनेक राजोंमहाराजोंको नाश हुआ । और ठीक भी है जिस वायुसे बड़े-बड़े हाथी तक जाते हैं तब उसके सामने बेचारे कीट-पतंगादि छोटे-छोटे जीव तो ठहर ही कैसे सकते हैं । श्वेतराम ने कार्त्तवीर्यको परशु विद्यासे मारा था, इसलिए फिर अयोध्या में वह 'परशुराम' इस नामसे प्रसिद्ध हुआ ।
संसार में जो शूरवीर, विद्वान्, सुखी, धनी हुए देखे जाते हैं वह पुण्यकी महिमा है । इसलिए जो सुखो, विद्वान्, धनवान्, वीर आदि बनना चाहते हैं, उन्हें जिन भगवान्का उपदेश किया पुण्य-मार्ग ग्रहण करना चाहिए ।
५७. सुकुमाल मुनिकी कथा
जिनके नाम मात्र हीका ध्यान करनेसे हर प्रकारकी धन-सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है, उन परम पवित्र जिन भगवान्को नमस्कार कर सुकुमाल मुनिको कथा लिखी जाती है ।
अतिबल कौशाम्बीके जब राजा थे, तबहीका यह आख्यान है । यहाँ एक सोमशर्मा पुरोहित रहता था । इसकी स्त्रीका नाम काश्यपी था । इसके अग्निभूत और वायुभूति नामक दो लड़के हुए। माँ- बापके अधिक लाड़ले होने से ये कुछ पढ़-लिख न सके । और सच है पुण्यके बिना किसीको विद्या आती भी तो नहीं । कालकी विचित्र गतिसे सोमशर्माकी असमय में ही मौत हो गई । ये दोनों भाई तब निरे मूर्ख थे । इन्हें मूर्ख देकर अतिबलने इनके पिताका पुरोहित पद, जो इन्हें मिलता, किसी और को दे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org