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परशुरामकी कथा
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धर्म इन्द्रादि देव भी पूजा भक्ति कर अपना जीवन कृतार्थ समझते हों । धर्मका स्वरूप उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव आदि दश लक्षणों द्वारा प्राय: प्रसिद्ध है और सच्चे गुरु वे कहते हैं, जो शील और संयमके पालनेवाले हों, ज्ञान और ध्यानका साधन ही जिनके जीवनका खास उद्देश्य हो और जिनके पास परिग्रह रत्तीभर भी न हो। इन बातों पर विश्वास करनेको सम्यक्त्व कहते हैं । इसके सिवा गृहस्थोंके लिए पात्र - दान करना, भगवान्को पूजा करना, अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत धारण करना, पर्वों में उपवास वगैरह करना आदि बातें भी आवश्यक हैं। यह गृहस्थ-धर्म कहलाता है। तू इसे धारण कर । इससे तुझे सुख प्राप्त होगा । भाईके द्वारा धर्मका उपदेश सुन रेणुका बहुत प्रसन्न हुई । उसने बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ सम्यक्त्व - रत्न द्वारा अपने आत्माको विभूषित किया । और सच भी है, यही सम्यक्त्व तो भव्यजनोंका भूषण है। रेणुकाका धर्म-प्रेम देखकर वरदत्त मुनिने उसे एक 'परशु' और दूसरी 'कामधेनु' ऐसी दो महाविद्याएँ दीं, जो कि नाना प्रकारका सुख देनेवाली हैं। रेणुकाको विद्या देकर जैनतत्त्व के परम विद्वान् वरदत्तमुनि विहार कर गये । इधर सम्यक्त्वशालिनी रेणुका घर आकर सुखसे रहने लगी । रेणुकाको धर्म पर अब खूब प्रेम हो गया । वह भगवान्को बड़ो भक्त हो गई ।
एक दिन राजा कार्त्तवीर्य हाथी पकड़ने को इसी वनकी ओर आ निकला । घूमता हुआ वह रेणुकाके आश्रम में आ गया। यमदग्नि तापसने उसका अच्छा आदर-सत्कार किया और उसे अपने यहीं जिमाया भी । भोजन कामधेनु नामकी विद्याकी सहायता से बहुत उत्तम तैयार किया गया था । राजा भोजन कर बहुत ही प्रसन्न हुआ । और क्यों न होता ? क्योंकि सारी जिन्दगी में उसे कभी ऐसा भोजन खानेको ही न मिला था । उस कामधेनुको देखकर इस पापी राजाके मनमें पाप आया । यह कृतघ्न तब उस बेचारे तापसीको जानसे मारकर गौको ले गया । सच है, दुर्जनोंका स्वभाव हो ऐसा होता है कि जो उनका उपकार करते हैं, वे दूध पिलाये सर्प की तरह अपने उन उपकारककी ही जानके लेनेवाले हो उठते हैं ।
राजाके जानेके थोड़ी देर बाद ही रेणुका के दोनों लड़के जंगल से लकड़ियाँ वगैरह लेकर आ गये । माताको रोतो हुई देखकर उन्होंने उसका कारण पूछा। रेणुकाने सब हाल उनसे कह दिया । माताकी दुःखभरी बातें सुनकर श्वेतराम के क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा । वह कार्त्तवीर्यसे अपने पिता का बदला लेनेके लिए उसी समय मातासे 'परशु' नामकी विद्याको लेकर अपने छोटे भाई को साथ लिए चल पड़ा । राजाके नगर में
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