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शराब पीनेवालोंकी कथा श्रीकृष्णको कन्धों पर उठाये महीनों पर्वतों और जंगलोंमें घूमते फिरे । बलभद्रकी यह हालत देख उनके पूर्व जन्म के मित्र एक देव को बहत खेद हुआ। उसने आकर इन्हें समझा-बुझा कर शान्त किया और इनसे भाईका दहन-संस्कार करवाया । संस्कार कर जैसे हो ये निवृत्त हुए, इन्हें संसारको दशा पर वड़ा वैराग्य हुआ। ये उसो समय सब दुःख, शोक, मायाममता छोड़कर योगी हो गये । इन्होंने फिर पर्वतों पर खूब दुस्सह तप किया। अन्तमें धर्मध्यान सहित मरण कर ये माहेन्द्र स्वर्गमें देव हए । वहाँ ये प्रतिदिन नित नये और मूल्यवान् सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण पहरते हैं, अनेक देव-देवी इनकी आज्ञामें सदा हाजिर रहते हैं, नाना प्रकारके उत्तमसे उत्तम स्वर्गीय भोगोंको ये भोगते हैं, विमान द्वारा कैलास, सम्मेद. शिखर, हिमालय, गिरनार आदि पर्वतोंकी यात्रा करते हैं, और विदेह क्षेत्रमें जाकर साक्षाज्जिनभगवान्की पूजा-भक्ति करते हैं । मतलब यह है कि पुण्यके उदयसे उन्हें सब कुछ सुख प्राप्त हैं और वे आनन्द-उत्सवके साथ अपना समय बिताते हैं ।
जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप इन तीन महान् रत्नोंसे भषित हैं, जो जिन भगवानके चरणोंके सच्चे भक्त हैं, चारित्र धारण करनेवालोंमें जो सबसे ऊँचे हैं, जिनकी परम पवित्र बुद्धि गुणरूपी रत्नोंसे शोभाको धारण किये हैं, और जो ज्ञानके समुद्र हैं, ऐसे बलभद्र मुनिराज मुझे वह सुख, शांति और वह मंगल दें, जिससे मन सदा प्रसन्न रहे।
५३. शराब पीनेवालोंकी कथा सब सुखोंके देनेवाले सर्वज्ञ भगवान्को नमस्कार कर शराब पीकर नुकसान उठानेवाले एक ब्राह्मणकी कथा लिखी जाती है । वह इसलिए कि इसे पढ़कर सर्व साधारण लाभ उठावें।
वेद और वेदांगोंका अच्छा विद्वान् एकपात नामका एक संन्यासी 'एकचक्रपूरसे चलकर गंगानदोकी यात्रार्थ जा रहा था। रास्ते में जाता हुआ यह देवयोगसे विन्ध्याटवीमें पहुंच गया। यहाँ जवानीसे मस्त हुए
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