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आराधना कथाकोश
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हालत हो जाती है । यहाँ तक कि उन्मत्त पुरुष अपनी माता बहिनों के साथ भी बुरी वासनाओं को प्रगट करनेमें नहीं लजाता है । शराब पीनेबाले पापी लोगोंको हित-अहितका कुछ ज्ञान नहीं रहता । इन लड़कों की शैतानीका हाल जब बलभद्रको मालूम हुआ तो वे वासुदेव को लिये दौड़ेदौड़े मुनिके पास आये और उन पत्थरोंको निकाल कर उनसे उन्होंने क्षमाकी प्रार्थना की। इस क्षमा करानेका मुनि पर कुछ असर नहीं हुआ । उनके प्राण निकलने की तैयारी कर रहे थे । मुनिने सिर्फ दो उंगुलियाँ उन्हें बतलाई । और थोड़ी ही देर बाद वे मर गये । क्रोधसे मर कर 'तपस्या के फलसे ये व्यन्तर हुए । इन्होंने कुवधि द्वारा अपने व्यन्तर होनेका कारण जाना तो इन्हें उन लड़कों के उपद्रवकी सब बातें ज्ञात हो गईं । यह देख व्यन्तरको बड़ा क्रोध आया। उसने उसी समय द्वारकामें आकर आग लगा दी । सारो द्वारका धन-जन सहित देखते-देखते खाक हो गई । सिर्फ बलभद्र और वासुदेव ही बच पाये, जिनके लिये कि द्वोपायनने दो उंगलियाँ बतलाई थीं। सच है, क्रोधके वश हो मूखं पुरुष सब कुछ कर बैठते हैं । इसलिये भव्यजनोंको शान्ति-लाभके लिए क्रोधको कभी पास भी न फटकने देना चाहिये। उस भयंकर अग्नि लीलाको देखकर बलभद्र और वासुदेवका भी जी ठिकाने न रहा । ये अपना शरीर मात्र लेकर भाग निकले । यहाँ से निकल कर ये एक घोर जंगलमें पहुँचे । सच है, पापका उदय आने पर सब धन-दौलत नष्ट होकर जी बचाना तक मुश्किल पड़ जाता है । जो पलभर पहले सुखी रहा हो वह दूसरे ही पल में पापके उदय से अत्यन्त दुःखी हो जाता है इसलिए जिन लोगोंके पास बुद्धिरूपी धन है, उन्हें चाहिये कि वे पापके कारणोंको छोड़कर पुण्यके कामोंमें अपने हाथों को बटावें । पात्र - दान, जिन-पूजा, परोपकार, विद्या प्रचार, शील, व्रत, संयम आदि ये सब पुण्यके कारण हैं । बलभद्र और वासुदेव जैसे ही उस जंगल में आये, वासुदेवको यहाँ अत्यन्त प्यास लगी । प्यासके मारे वे गश खाकर गिर पड़े । बलभद्र उन्हें ऐसे ही छोड़ कर जल लाने चले गये । इधर जरत्कुमार न जाने कहाँसे इधर ही आ निकला । उसने श्रीकृष्णको हरिणके भ्रमसे बाण द्वारा बेध दिया। पर जब उसने आकर देखा कि वह हरिण नहीं, किन्तु श्रीकृष्ण हैं तब तो उसके दुःखका कोई पार न रहा । पर अब वह कुछ करने धरनेको लाचार था । वह बलभद्र के भयसे फिर उसी समय वहाँ से भाग लिया। इधर बलभद्र जब पानी लेकर लौटे और उन्होंने श्रीकृष्णकी यह दशा देखी तब उन्हें जो दुःख हुआ वह लिखकर नहीं बताया जा सकता । यहाँ तक कि वे भ्रातृप्रेम से सिड़ीसे हो गये और
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