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________________ वशिष्ठ तापसीकी कथा __ २२१ है, कुपुत्र कुलका काल होता है। अपने भाईकी यह नीचता देखकर कंसके छोटे भाई अतिमुक्तकको संसारसे बड़ी घृगा हुई। उन्होंने सब मोह-माया छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर ली। वसुदेव कंसके गुरु थे । इसके सिवा उन्होंने उसका बहुत कुछ उपकार किया था; इसलिए कंसकी उन पर बड़ी श्रद्धा थी। उसने उन्हें अपने ही पास बुलाकर रख लिया । मृतकावती पुरीके राजा देवकोके एक कन्या थी। वह बड़ी सुन्दर थी। राजाका उस पर बहुत प्यार था। इसलिये उसका नाम उन्होंने अपने हो नाम पर देवकी रख दिया था। कंसने उसे अपनी बहिन करके मानी थी, सो वसुदेवके साथ उसने उसका ब्याह कर दिया। एक दिनकी बात है कि कंसको स्त्री जीवंजसा देवकीके और अपने देवर अतिमुक्तकी स्त्री पुष्पवतीके वस्त्रोंको आप पहरकर नाच रही थी-हँसी-मजाक कर रही थी। इसी समय कंसके भाई अतिमुक्तक मुनि आहारके लिये आये । जीवंजसाने हँसते-हँसते मुनिसे कहा-अजी ओ देवरजी, आइए ! आइए !! मेरे साथ-साथ आप भी नाचिये । देखिए, फिर बड़ा ही आनन्द आवेगा। मुनिने गंभीरतासे उत्तर दिया-बहिन, मेरा यह मार्ग नहीं है। इसलिए अलग हो जा और मुझे जाने दे। पापिनी जीवंजसाने मुनिको जाने न देकर उलटा हठ पकड़ लिया और बोली-नहीं, मैं तब तक आपको कभी न जाने दंगी जब तक कि आप मेरे साथ न नाचेंगे। मुनिको इससे कुछ कष्ट हुआ और इसीसे उन्होंने आवेगमें आ उससे कह दिया कि मुर्खे, नाचती क्यों है ! जाकर अपने स्वामीसे कह कि आपकी मौत देवकीके लड़के द्वारा होगी और वह समय बहुत नजदीक आ रहा है। सुनकर जीवंजसाको बड़ा गुस्सा आया। उसने गुस्से में आकर देवकीके वस्त्रको, जिसे कि वह पहरे हुए थी, फाड़कर दो टुकड़े कर दिये। मुनिने कहामूर्ख स्त्री, कपड़ेको फाड़ देनेसे क्या होगा? देख और सून, जिस तरह तने इस कपड़ेके दो टुकड़े कर दिये हैं उसो तरह देवकोके होनेवाला वीर पुत्र तेरे बापके दो टुकड़े करेगा । जीवंजसाको बड़ा ही दुःख हुआ । वह नाचना गाना सब भूल गई। अपने पतिके पास दौड़ी जाकर वह रोने लगी। सच है यह जीव अज्ञानदशामें हँसता-हँसता जो पाप कमाता है उसका फल भी इसे बड़ा हो बुरा भोगना पड़ता है। कंस जीवंजसाको रोती देखकर बड़ा घबराया। उसने पूछा-प्रिये, क्यों रोतो हो ? बतलाओ, क्या हुआ ? संसारमें ऐसा कौन धृष्ट होगा जो कंसको प्राणप्यारोको रुला सके ! प्रिये, जल्दी बतलाओ, तुम्हें रोती देखकर मैं बड़ा दुःखी हो रहा हूँ। जीवंजसाने मुनि द्वारा जो-जो बातें सुनी थीं, उन्हें कंससे कह दिया । सुनकर कंसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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