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आराधना कथाकोश
है । साधु होकर देवर तिने खूब तपश्चर्या की, बहुतोंको कल्याणका मार्ग बतलाया और अन्त में समाधिसे शरीर त्याग कर वे स्वर्ग में अनेक ऋद्धियोंके धारक हुए ।
रक्तारानी सरीखी कुलटा स्त्रियों का घृणित चरित देखकर और संसार, शरीर, भोगादिकोंको इन्द्र-धनुषकी तरह क्षणिक समझकर जिन देवरति राजाने जिनदीक्षा ग्रहण कर मुनिपद स्वीकार किया, वे गुणोंके खजाने मुनिराज मुझे मोक्ष लक्ष्मीका स्वामी बनावें ।
३१. गोपवतीको कथा
संसार द्वारा वन्दना, स्तुति किये गये और सब सुखोंको देनेवाले जिनभगवान्को नमस्कारकर गोवतीकी कथा लिखी जाती है, जिसे सुनकर हृदयमें वैराग्य भावना जगती है ।
पलासगाँव में सिंहबल नामका एक साधारण गृहस्थ रहता था । उसकी स्त्रीका नाम गोपवती था । गोपवतो बड़े दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी । उसकी दिन-रातकी खटपटसे बेचारा सिंहबल तबाह हो गया । उसे एक पलभरके लिए भी गोपवतीके द्वारा कभी सुख नहीं मिला ।
गोपवती से तंग आकर एक दिन सिंहबल पास हीके एक पद्मिनीखेट नामके गाँवमें गया । वहाँ उसने अपनी पहली स्त्रीको बिना कुछ पूछ-ताछे गुप्त रीतिसे सिंहसेन चौधरीकी सुभद्रा नामकी लड़कीसे, जो कि बहुत ही खूबसूरत थी, ब्याह कर लिया। किसी तरह यह बात गोपवती को मालूम हो गई । सुनते ही क्रोध के मारे वह आग-बबूला हो गई । उससे सिबलका यह अपराध नहीं सहा गया । वह उसे उसके अपराधकी योग्य सजा देने की फिराकमें लगी ।
एक दिन शाम कोई सात बजे होंगे कि गोपवती अपने घरसे निकलकर पद्मिनीखेट गई । उस समय कोई ग्यारह बज गये होंगे। गोपवती सीधी सिंहसेनके घर पहुँची । घरके लोगोंने समझा कि कोई आवश्यक कामके लिए यह आई होगी, सबेरा होने पर विशेष पूछ-ताछ करेंगे । यह विचारकर वे सब सो गये । गोपवती भो तब लोगोंको दिखानेके लिए सो
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