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देवरतिराजाको कथा सकता है ? परन्तु मुझे किसीके कष्ट पहुँचानेसे भी जितना दुःख नहीं होता उससे कहीं बढ़कर आज अपनी इस दशाका दुःख है। नाथ, आप जानते हैं आज आपको जन्मगाँठका दिन है । पर अत्यन्त दुःख है कि पापी देवने आज मुझे इस भिखारिणीकी दशामें पहुँचा दिया। मेरे पास एक फूटी कौड़ो भी नहीं । बतलाइए, मैं आज ऐसे उत्सवके दिन आपको जन्मगाँठका क्या उत्सव मनाऊँ ? सच है नाथ, बिना पुण्यके जीवोंको अथाह शोक-पागरमें डूब जाना पड़ता है । रानीको प्रेम-भरी बातें सुनकर राजाका गला भर आया, आँखोंसे आँसू टपक पड़े। उन्होंने बड़े प्रेमसे रानीके मुंहको चूमकर कहा-प्रिये, इसके लिये कोई चिन्ताको बात नहीं । कभी वह दिन भी आयगा जिस दिन तुम अपनी कामनाओंको पूरी कर सकोगी। और न भी आये तो क्या ? जबकि तुम जैसी भाग्यशालिनी जिसकी प्रिया है उसे इस बातकी कुछ परवा भी नहीं है। जिसने अपनी प्रियाकी सेवाके लिए अपना राजपाट तक तुच्छ समझा उसे ऐसो-ऐसी छोटी बातोंका दुःख नहीं होता। उसे यदि दुःख होता है तो अपनी प्यारीको दुःखी देखकर ! प्रिये, इस शोकको छोड़ो। मेरे लिए तो तुम ही सब कुछ हो । हाय ! ऐसे निष्कपट प्रेमका बदला जान लेकर दिया जायगा, इस बातकी खबर या सम्भावना बेचारे रतिदेवको स्वप्न में भी नहीं थी। देवकी विचित्र गति है।
राजाके इस हार्दिक और सच्चे प्रेमका पापिनी रानीके पत्थरके हृदयपर जरा भी असर न हुआ। वह ऊपरसे प्रेम बताकर बोली-अस्तु, नाथ, जो बात हो ही नहीं सकती उसके लिए पछताना तो व्यर्थ ही है। पर तब भी मैं अपने चित्तको सन्तोषित करनेको इस पवित्र फूलकी माला द्वारा नाममात्रके ही लिए कुछ करती हूँ। यह कहकर रानीने अपने हाथमें जो फूल गूंथनेकी रस्सी थी, उससे राजाको बाँध दिया। बेचारा वह तब भी यही समझा कि रानी कोई जन्मगाँठकी विधि करती होगी और यही समझ उसने खूब मजबूत बाँध जाने पर भी चूं तक नहीं किया। जब राजा बाँध दिया गया और उसके निकलनेका कोई भय नहीं रहा तब रानीने इशारेसे उस अपंगको बुलाया और उसकी सहायतासे पास ही बहनेवाली यमुना नदीके किनारेपर ले जाकर बड़े ऊँचेसे राजाको नदी में ढकेल दिया और आप अब अपने दूसरे प्रियतमके पास रहकर अपनी नीच मनोवृत्तियोंको सन्तुष्ट करने लगी। नीचता और कुलटापनकी हद हो गई।
पुण्यका जब उदय होता है तब कोई कितना ही कष्ट क्यों न दे या कैसी हो भयंकर आपत्तिका क्यों न सामना करना पड़े। पर तब भी वह
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