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आराधना कथाकोश आती हुई लक्ष्मीको पाँवकी ठोकरसे ठुकरावेगा? तब अपने पुत्रको राज्य मिलने में यह एक कंटक है । इसे किसी तरह उखाड़ फेंकना चाहिए। यह विचार कर वह मौका देखने लगी । एक दिन वज्रकुमारने अपनी माताके मुंहसे यह सुन लिया कि "वज्रकुमार बड़ा दुष्ट है। देखो, तो कहाँ तो उत्पन्न हुआ और किसे कष्ट देता है ?" उसकी माता किसीके सामने उसकी बुराई कर रही थी। सुनते ही वज्रकुमारके हृदयमें मानों आग बरस गई। उसका हृदय जलने लगा। उसे फिर एक क्षणभर भो उस घरमें रहना नर्क बराबर भयंकर हो उठा। वह उसी समय अपने पिताके 'पास गया और बोला-पिताजी, जल्दी बतलाइए मैं किसका पुत्र हूँ ?
और क्यों कर यहाँ आया ? मैं जानता हूँ कि आपने मेरा अपने बच्चेसे कहीं बढ़कर पालन किया है, तब भी मुझे कृपाकर बतला दोजिए कि मेरे सच्चे पिता कौन हैं ? और कहाँ हैं ? यदि आप मुझे ठीक-ठीक हाल नहीं कहेंगे तो मैं आजले भोजन नहीं करूँगा !
दिवाकरदेवने आज एकाएक वज्रकुमारके मुंहसे अचम्भे में डालनेवाली बातें सुनकर वजकुमारसे कहा-पुत्र, क्या आज तुम्हें कुछ हो तो नहीं गया है, जो बहकी-बहकी बातें करते हो? तुम समझदार हो, तुम्हें ऐसी बातें करना उचित नहीं, जिससे मुझे कष्ट हो।
वज्रकुमार बोला—पिताजी मैं यह नहीं कहता कि मैं आपका पुत्र नहीं, क्योंकि मेरे सच्चे पिता तो आप ही हैं, आप होने मुझे पालापोषा है । पर जो सच्चा वृत्तान्त है, उसके जाननेकी मेरी बड़ी उत्कण्ठा है। इसलिए उसे आप न छिपाइए। उसे कहकर मेरे अशान्त हृदयको शान्त कीजिए। बहुत सच है बड़े पुरुषोंके हृदय में जो बात एक बार समा जाती है फिर वे उसे तबतक नहीं छोड़ते जबतक उसका उन्हें आदि अन्त मालम न हो जाय। वज्रकुमारके आग्रहसे दिवाकरदेवको उसका पूर्व हाल सब ज्योंका त्यों कह देना ही पड़ा। क्योंकि आग्रहसे कोई बात छपाई नहीं जा सकती। वज्रकुमार अपना हाल सुनकर बड़ा विरक्त हुआ। उसे संसारका मायाजाल बहुत भयंकर जान पड़ा। वह उसी समय विमानमें चढ़कर अपने पिताकी वन्दना करनेको गया। उसके साथ ही उसका पिता तथा और-और बन्धुलोग भी गये । सोमदत्त मुनिराज मथुराके पास एक गुहामें ध्यान कर रहे थे। उन्हें देखकर सब हो बहुत आनन्दित हुए । सब बड़ी भक्तिके साथ मुनिको प्रणाम कर जब बैठे, तब वज्रकुमारने मुनिराजसे कहा-पूज्यपाद, आज्ञा दीजिए, जिससे मैं साधु बनकर
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