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५६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-काञ्चन शब्द
हिन्दी टीका-काञ्चन शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. उदुम्बर (गूलर) २. धुस्तूर (धतूरे) और ३. चम्पक (चम्पा फूल)। काञ्ची शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्त्रीकट्याभरण (करधनी-मेखला-कन्दोरी) २ मोक्षदायिपुरान्तर (मोक्षपुरी विशेष) क्योंकि "काशी काञ्ची अवन्तिका" इस वचन से काञ्ची को भी मोक्षपूरी कहा गया है। काण्ड शव्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके ११ अर्थ होते हैं -१. कुत्सित (निन्दित) २. बाण, ३. दण्ड, ४. नीर (जल) ५ समूह, ६. वर्ग (समुदाय) ७. रहसि (एकान्त) ८. प्रस्ताव (प्रस्तावना) ६. श्लाघा (प्रशंसा) १०. स्तम्ब (गुच्छा) और ११. चन्द्र । इस तरह कुल मिलाकर काञ्चन शब्द के है और काञ्ची शब्द के दो तथा काण्ड शब्द के ११ अर्थ जानना चाहिए। मूल : पापीयसि तरुस्कन्धे काणो विकल लोचने ।
कादम्ब: कलहंसे स्यात् कदम्बतरु बाणयो ॥२६६।। कादम्बरी सरस्वत्यां मदिरा ग्रन्थभेदयोः ।
कोकिलायां शारिकाख्य पक्षिण्यामपि कीर्तिता ॥३०॥ हिन्दी टीका-काण्ड शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं १ पापीयान् (पापी) और २. तरु स्कन्ध (वृक्ष का कन्धा :- मध्य भाग)। काण शब्द का १. विकललोचन (अन्धा) अर्थ होता है। कादम्ब शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कलहस (हंसपक्षी) २. कदम्ब तरु (कदम्ब का वृक्ष) और ३. बाण (शर)। कादम्बरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सरस्वती, २. मदिरा (शराब) ३. ग्रन्थ विशेष (कादम्बरी नाम का गद्य महाकाव्य) ४. कोकिला (कोयल) और ५. शारिकाख्यपक्षी (मेना) । इस तरह काण्ड शब्द के कुल मिलाकर १३ और काण शब्द का एक तर्थ कादम्ब शब्द के तीन एवं कादम्बरी शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : काननं भवनेऽरण्ये ब्रह्मणो वदने स्मृतम् ।
कान्तः पुमान् चन्द्रमसि श्रीकृष्णे हिज्जलद्रुमे ॥३०१॥ पत्यौ वसन्ते क्लीवन्तु कुङ्क मे त्रिषु शोभने ।
कान्ता नागरमुस्तायां रेणुका स्त्री विशेषयोः ॥३०२।। हिन्दी टीका-कानन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भवन (मकान, गृह) २. अरण्य (वन जंगल) और ३. ब्रह्मवदन (ब्रह्म का मुख)। कान्त शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. चन्द्रमा, २. श्रीकृष्ण, ३. हिज्जलद्रुम (जल बेंत-स्थल बेंत) ४. पति, ५. बसन्त (ऋतु विशेष) ६. कंकुम अर्थ में नपुंसक और शोभन अर्थ में त्रिलिंग समझना चाहिए। कान्ता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ नागरमुस्ता (नागर मोथा) २. रेणुका (जमदग्नि की स्त्री) और ३. स्त्रीविशेष (पतिप्रिया)। इस तरह कानन शब्द के तीन और कान्त शब्द के सात तथा कान्ता शब्द के भी तीन अथा समझना चाहिए। मूल : पोषायां बृहदेलायां प्रियङ्ग, पादपे स्त्रियाम् ।
कान्तार इक्षुभेदे स्याद् वंशे कुद्दाल-पादपे ॥३०३॥ कान्तारोऽस्त्रीबिले दुःखगम्यमार्गे महावने । कान्तिर्घतौस्त्री शोभायां दुर्गायां वाञ्छनेपि च ॥३०४॥
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