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इस साहित्य के संरक्षण की चर्चा की तो हम सब गद्गद् हो उठे । तत्क्षण दृढ़ संकल्प किया गया कि साहित्य की इस मूल्यवान निधि का यथोचित्त सम्पादन प्रकाशन करवाकर जन-जन के कल्याण के लिए इ शीघ्र ही उपलब्ध करवाया जाय।
तपस्वी गुरुदेव श्री की प्रेरणा तथा मार्ग-दर्शन में एक समिति का गठन किया गया और साहित्य प्रकाशन का कार्य सुचारु रूप से संचालित करने का दायित्व श्री फकीरचन्दजी मेहता को सौंपा गया।
इस कार्य में गुरुदेवश्री की प्रेरणा से समाज के अनेक गणमान्य सज्जनों ने उदारतापूर्वक सहयोग प्रदान किया है और हमें आशा है वे भविष्य में भी सहयोग करते रहेंगे। हम प्रयास करेंगे कि आचार्यश्री की महत्वपूर्ण कृतियों का प्रकाशन यथाशीघ्र हो । फिलहाल तोन विशिष्ट ग्रन्थों का प्रकाशन कार्य प्रारम्भ किया गया है
(१) प्राकृत चिन्तामणि (प्राकृत व्याकरण : प्रथमा परीक्षोपयोगी) (२) प्राकृत कौमुदी (प्राकृत भाषा का सम्पूर्ण व्याकरण पंचाध्यायी) (३) श्री नानार्थोदय सागर कोश (विशिष्ट शब्द कोश)
इन तीनों का प्रकाशन समाज के सुपरिचित विद्वान साहित्यसेवी श्री श्रीचन्दजी सुराना (आगरा) को सौंपा गया है । वैसे ही मूर्धन्य विद्वान डा. नेमीचन्दजी जैन ने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिख कर इसमें चार चाँद लगा दिये हैं। हमें विश्वास है कि ये प्रकाशन सभी के लिये उपकारी एवं लाभदायी होंगे और हमारे साँस्कृतिक तथा साहित्यिक अभ्युत्थान के लिए एक सोपान सिद्ध होंगे।
इन ग्रन्थ-मणियों में से हमने प्रथम मणि प्राकृत चिन्तामणि का प्रकाशन किया है, अब "नानार्थोदय सागर कोष" द्वितीय मणि के रूप में प्रस्तुत है। हमें विश्वास है जिज्ञासु जन, जो जैन धर्म तथा उत्तर काल की भाषा सम्पदा का अधिक गहरा अध्ययन करना चाहते हैं, इससे वे अवश्य लाभान्वित होंगे।
विनीत
फकीरचन्द मेहता
(महामन्त्री)
नेमनाथ जैन (अध्यक्ष)
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