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प्रकाशक के बोल
साहित्य समाज का दर्पण तो है ही, गौरव भी है । जिस समाज का साहित्य जीवन्त है, वह अमर है । महाकाल के क्रूर प्रहार भी उसके अमर यश एवं संस्कारों को मिटा नहीं सकते ।
स्थानकवासी जैन परम्परा के प्रज्ञापुरुष स्व० आचार्य श्री घासीलालजी महाराज इस शताब्दी के महान् साहित्यस्रष्टा सन्त थे । उनके विषय में कहा जाता है कि वे जैन परम्परा के द्वितीय हेमचन्द्र थे । श्रुतोपासना और श्रुत-सर्जना ही उनके जीवन का अन्यतम उद्देश्य था । उनके द्वारा रचित साहित्य की सूची ( जीवन परिचय में) देखकर पाठक अनुभव कर सकते हैं, उन्होंने श्रुत-सर्जना में किस प्रकार अपना जीवन समर्पित कर समूची मानव-जाति के लिये ज्ञान का अमर दीपक प्रज्वलित रखा |
आचार्य श्री द्वारा सम्पादित / संशोधित आगम तथा कतिपय अन्य ग्रन्थ तो प्रकाश में आ चुके हैं, किन्तु अभी भी उनका अधिकाँश साहित्य प्रकाशन की प्रतीक्षा में है । आश्चर्य है कि एक महापुरुष ने हमारे लिए इतनी विपुल ज्ञान राशि एकत्र की और हम उसकी सुरक्षा भी नहीं कर सकते ! क्या एक व्यक्ति के इस महान श्रम को हम हजारों व्यक्ति मिलकर भी उजागर नहीं कर सकते ?
खानदेश केशरी पं० रत्न, तपस्वी, ध्यानयोगी मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज परम उपकारी गुरुदेव श्री घासीलालजी महाराज की पुण्य स्मृति में जब कभी भाव-विभोर होकर उनके विषय में प्रकाश डालते हैं तो हमारे मन की खिड़कियाँ खुल जाती हैं और हम सोचने लगते हैं कि जिस अतीव श्रम और समर्पण भाव से जिन्होंने इतना विशाल साहित्य सृजन किया, वह आज कितनी और कैसी दयनीय स्थिति में है ? वे बहुमूल्य पाण्डुलिपियाँ या तो कपाटों में बन्द पड़ी हैं या उन पर धूल, मिट्टी जम रही है और खतरा है कि कहीं यह दुर्लभ विपुल ज्ञान राशि साहित्य तस्करी के रास्ते विदेशों को न चली जाय ? उन विदेशों को, जहाँ हमारी दुर्लभ सांस्कृतिक ज्ञान- सम्पदा मिट्टी के भाव खरीदकर उसमें से सोना पैदा किया जाता है । हम जानते हैं कि भारत की दुर्लभ साहित्य सामग्री विपुल परिमाण में विदेशों में बिकी है और उससे खूब लाभ उठाया गया है । गुरुदेव प्रणीत इस साहित्य-सम्पदा पर भी कहीं किसी भी कुदृष्टि न पड़े अतः हमें इस विषय में पहले से ही सावधान रहना चाहिए ।
तपस्वीराज श्री कन्हैयालालजी महाराज जब इन्दौर पधारे और उन्होंने हमारे सम्मुख जब
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