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३२० | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित --शंसित शब्द
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हिन्दी टीका - शंसित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. निर्णीत (निश्चित ) २. स्तवन (स्तुति) और ३. हिंसित (मारित) । शक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं- १ देशान्तर ( देश विशेष - शक नाम का देश ) २. म्लेच्छ्जाति (यवन जाति वगैरह ) और ३. शालिवाहन (शालिवाहन नाम का राजा) । शकट शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. विष्णु वध्यासुर ( भगवान विष्णु से वध्य शकट नाम का असुर विशेष ) । अन: ( शकट गाड़ी) और ३. शाकटीन (गाड़ी को खींचने वाला बैल) । शकल शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. वल्कल (छाल) २. शल्क (टुकड़ा) ३. खण्ड ४. त्वक् (त्वचा) और ५. रागवस्तु ।
मूल :
अस्त्रियामेकदेशेऽसौ भित्तेऽपि शकली झषे । शुभशंसि निमित्ते स्यात् शकुनं फललक्षणे ॥। १८४१ ॥ शकुनः पुंसि विहगें महगीते द्विजान्तरे । शकुनिः पुंसि विहगे चिल्लपक्षिणि सौवले ।। १८४२ ।।
हिन्दी टीका - पुल्लिंग तथा नपुंसक शकल शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. एक देश (एक भाग) और २. भित्त (दोवाल ) । नकारान्त शकली शब्द का अर्थ - १. झष (मछली) होता है । नपुंसक शकुन शब्द का अर्थ - १. फल लक्षण शुभ शंसिनिमित्त (सफलतासूचक शुभ चिह्न - अक्षि सन्दन वगैरह ) किन्तु पुल्लिंग शकुन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. विहग (पक्षी) २. महगीत ( उत्सव में गाया गया) और ३. द्विजान्तर ( द्विज विशेष ) । शकुनि शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. विहग (पक्षी) २. चिल्ल पक्षी (चिल्होर, चील) और ३. सौवल (दुर्योधन वर्गरह कौरव का मातुल) को भी शकुनि कहते हैं । इस प्रकार शकुनि शब्द का तीन अर्थ समझना चाहिये ।
मूल :
विकुक्षिपुत्रे
करणप्रभेदे दुस्सहात्मजे ।
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शकुन्तः कीटभेदे ना विहगे भासपक्षिणि ।। १८४३ ॥ कट्फले जल पिप्पल्यां मांसी- कश्चट शाकयोः ।
चक्राङ्गी - गज पिप्पल्योः स्यात् स्त्रियां शकुलादनी ॥। १८४४ ॥
हिन्दी टीका - शकुनि शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. विकुक्षि पुत्र और २. करणप्रभेद (करणविशेष-ववादि एकादशकरणान्तर्गत अष्टम करण ) को भी शकुनि कहते हैं और ३. दुःसहात्मज (दुःसह राजा का पुत्र) को भी शकुनि कहते हैं । शकुन्त शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. कीटभेद (कीट विशेष ) २. विहग (पक्षी) और ३. भास पक्षी (भास नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष ) । शकुलादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. कट्फल (कायफल ) २. जल पिप्पली ( जल पीपरि) ३. मांसी (जटामांसी) और ४. कञ्चटशाक ( कञ्चट नाम का शाक विशेष ) और ५. चक्रांगी (कुटकी) और ६. गजपिप्पली ( गजपीपरि ) ।
मूल :
शक्वरी स्त्री सरिभेदे मेखला - वृत्तभेदयोः ।
शक्रः
शक्ति: स्त्री प्रकृती गौर्या लक्ष्म्यामस्त्रान्तरे बले ।। १८४५ ॥ पुरन्दरे ज्येष्ठानक्षत्रे कुटजद्रुमे । शक्रिर्ना कुलिशे मेघे मतङ्गज- महीघ्रयोः ॥ १८४६ ॥
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