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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जगल शब्द | ११७ स्तूप टीला) । जगल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - धूर्त (वञ्चक) और २. मदनपादप (अर्कवृक्ष आँक का पौधा)। मूल : पिष्टमद्ये सुराकल्के कवचे गोमयेऽपि च ।
जग्धं भुक्त स्त्रियां जग्धिभक्षणे सहभोजने ॥ ६३३ ॥ नारीकटिपुरोभागे क्लीवं जघनमुच्यते ।
जघन्यो मेहने शूद्रे गर्हिते चरमेऽधमे ॥ ६३४ ॥ हिन्दी टोका-जगल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. पिष्टमद्ये (पीसा हुआ शराब, पिष्टकमद्य) २. सुराकल्क (शराब का मल, मला शराब) ३. कवच, और ४. गोमय (गोबर) को भी जगल कहते हैं । जग्ध शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-भुक्त (खाया हुआ) होता है । जग्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. भक्षण (खाना) और २. सह-भोजन (साथ भोजन, पार्टी)। जघन शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-नारी कटि पुरो-भाग (स्त्री की नाभि का नीचे भाग) को जघन कहते हैं । जघन्य शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. मेहन (मूत्रन्द्रिय) २, शूद्र, ३. गर्हित (निन्दित) ४. चरम (अन्तिम) और ५. अधम (नीच) इस तरह जघन्य शब्द के पांच अर्थ जानना। मूल : जङ्गलं निर्जन स्थाने त्रिलिंगः पिशिते स्त्रियाम् ।
जंघालोऽतिजवे जंघात्राणन्तु मंक्षुणे स्मृतम् ॥ ६३५ ॥ जटा शतावरी-मासी-मूल-व्रतिशिखासु च ।
मूले रुद्र जटायां च कपिकच्छावपि स्मृतम् ॥ ६३६ ॥ हिन्दी टीका-जंगल शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थ-१. निर्जन स्थान (एकान्त स्थान) होता है किन्तु २. पिशित (माँस) अर्थ में जंगल शब्द स्त्रीलिंग माना गया है। जंघाल शब्द पुल्लिग है
और उसका अर्थ-१ अतिजव (अत्यन्त वेग) होता है। जंघात्राण शब्द. नपुंसक है और उसका अर्थ१. मंक्षुण होता है । जटा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. शतावरी मूल (शतावर का मूल भाग) २. मूल मासी (औषधि लता विशेष का मूल भाग) और ३. व्रतिशिखा (व्रती योगी की शिखा चोटी) को भी जटा कहते हैं । ४. मूल (मूल भाग) और ५. रुद्रजटा (शंकर की जटा) एवं ६. कपिकच्छु (कवाछु)। मूल : जटाजूटो जटापुजे कपर्देऽपि पिनाकिनः ।
जटालो वट-क- र-क्षार वृक्षेषु गुग्गुलौ ॥ ६३७ ॥ त्रिलिंगस्तु जटायुक्त जटि: प्लक्ष समूहयोः।
जटिलः पुंसि पञ्चास्ये जटायुक्त त्रिषु स्मृतः॥ ६३८ ॥ हिन्दी टीका-जटाजूट शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१ जटापुञ्ज (जटासमूह) और २. पिनाकिनःकपर्द (शंकर का कपर्द - जटाजूट)। जटाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं ---१. वट (वट वृक्ष) क्योंकि उसमें बहुत से बड़ जटा होते हैं और २ कचूर (पलाश-आमाहल्दी) ३. क्षार वृक्ष (खार वृक्ष विशेष) और ४. गुग्गुलु (गुग्गल) किन्तु १. जटायुक्त (जटा से युक्त) अर्थ में
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