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________________ और-कण्टह-कंठक जेन पुराणकोश : ६९ औद्र-दक्षिण भारत का एक देश । दिग्विजय के समय भरतेश ने इस क-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३३ देश के राजा को पराजित किया था। मपु० २८.७९ ककुत्थ-इक्ष्वाकुवंशी पुंजस्थल का पुत्र । यह राजा रघु का पिता था । औपशमिक चारित्र-मोहनीय कर्म के पूर्णतः उपशमन से प्राप्त चारित्र । पपु० २२.१५८-१५९ इसकी उपलब्धि से मोक्ष मिलता है। मपु० ११.९१, हपु० ३.१४५ ककूश नागप्रिय पर्वत के आगे का देश (रेवा प्रदेश का मध्य भाग)। औपशमिक सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म यह देश हाथियों के लिए प्रसिद्ध था । मपु० २९.५७ के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ कर्कोटक-(१) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३६ स्वरूप विदित होता है । मपु० ९.११७, हपु० ३.१४३-१४४ (२) राजा धरण का तृतीय पुत्र । वासुकि और धनंजय इसके औषधि ऋद्धि-तप से प्राप्त एक ऋद्धि। यह अनेक प्रकार की होती अग्रज तथा शतमुख और विश्वरूप अनुज थे। हपु० ४८.५० है । बाहुबली को उनके घोर तप से यह ऋद्धि प्राप्त हुई थी। मपु० (३) कुम्भ कण्टक द्वीप का पर्वत । यहाँ चारुदत्त आया था। पु० ३६.१५३ २१.१२३ औषधी-विदेहस्थ पुष्कला देश की राजधानी । मपु० ६३.२१३, हपु० कक्ष-एक देश । लवणांकुश ने यहाँ के राजा को पराजित किया था। ५.२५७ पपु० १०१.७९-८६ कच्छ-(१) वृषभदेव की महारानी यशस्वती का भाई । मपु० १५.७० (२) आर्यखण्ड का एक देश (काठियावाड़)। मपु० १६.१४१कंचुकी–वे वृद्ध जो अन्तःपुर की स्त्रियों के मध्य रहकर आदर से उनकी १४३, २९.४१, १५३ अंग-रक्षा करते हैं । मपु० ८.१२८ (३) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र का एक देश । मपु० ४९.२, कंजसंजात-भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३८ ६३.२०८ कंजा-एक नदी । भरतेश की सेना ने अपनी विजय-यात्रा में इस नदी (४) वृषभदेव का बहत्तरवें गणधर । मपु० १२.६८, ४३.६५ पर पड़ाव डाला था। मपु० २९.६२ (५) तीर्थकर वृषभदेव के साथ दीक्षित एक मुनि । यह क्षुधा कंदुकक्रोडा-प्राचीन भारत की प्रमुख क्रीड़ा। जयकुमार ने अपने अति- आदि परीषहों से त्रस्त होकर छ: मास में ही भ्रष्ट हो गया था। थियों के सम्मान में इस क्रीड़ा का आयोजन किया था। मपु० हपु० ९.१०४ ४५.१८७ कच्छकावती-पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीता नदी और नील कुलाचल के कंपनपुर-विद्याधरों की निवासभूमि । यहाँ का राजा रावण का हितैषी मध्य प्रदक्षिणा रूप से स्थित देश । यह छ: भागों में विभाजित था था । पपु० ५५.८४-८८ और अरिष्टपुरी इस देश की राजधानी थी । अपरनाम कच्छ । मपु० कंस-मथुरा नगरी के राजा उग्रसेन और उसकी रानी पद्मावती का ६३.२०८-२१३, हपु० ५.२४५, ६०. ७० पुत्र । उत्पन्न होने पर इसकी क्रूरता के कारण कांस्य से निर्मित पेटी कच्छा-दे० कच्छकावती में इसे रखकर यमुना में बहा दिया था । कौशाम्बी में किसी कलालिन कच्छाकूट-माल्यवान् पर्वत का एक कूट । हपु० ५.२१९ को यह प्राप्त हुआ। उसने इसका पालन किया किन्तु दुराचारी होने - कज्जलप्रभा-सुमेरु पर्वत की पश्चिम-दक्षिण (नैऋत्य) दिशा में स्थित से यह उसके द्वारा भी निष्कासित कर दिया गया। इसके पश्चात् यह वापी । अपरनाम कज्जला ।हपु० ५.३४३ शौर्यपुर नरेश वसुदेव से धनुविद्या सीखकर उनका सेवक हो गया था । कज्जला-दे० कज्जलप्रभा यह जरासन्ध के शत्रु को बांधकर ले आया था इसलिए जरासन्ध ने कटक-कर का आभूषण (कड़ा)। नर और नारियाँ दोनों इसे पहिनते अपनी पुत्री जोवद्यशा का इससे विवाह कर दिया था और इसे मथुरा थे। मपु० ३.२७, ७.२३५, १४.१२, १५.१९९, १६.२३६, पपु० का राजा भी बना दिया था। पूर्व वैरवश इसने अपने पिता उग्रसेन । को कैद कर लिया तथा अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के कटपू-भविष्यत् कालीन पाँचवें तीर्थंकर का जीव । मपु० ७६.४७२ साथ कर दिया। देवकी के पुत्र को अपना हन्ता जानकर इसने अपने कटाक्षनृत्य-नृत्य करते समय कटाक्षों के द्वारा हाव और भाव का महल में ही उसकी प्रसूति की व्यवस्था करायी थी। इसे देवकी के प्रदर्शन । तीर्थकर के जन्मोत्सव पर इन्द्र द्वारा किये जानेवाले आनन्द सभी पुत्र मृत हुए बताये गये थे। अन्त में देवकी के ही पुत्र कृष्ण नाटक के अवसर पर देवियाँ यह नृत्य करती हैं। मपु० १४.१४५ द्वारा यह मारा गया था। मपु०७०.३४१-३८७, ४९४, हपु० १.८७, कटिसूत्र-कटि प्रदेश का एक आभूषण । मपु० ३.१५९, ११.४४, १६. ३३.२-३६, ३५.७, ३६.४५, ५०.१४, पापु० ११.४२-५९ १९, पपु० ३.१९४ कंसाचार्य-धर्मप्रवर्तक ग्यारह अंग धारियों में पांचवें आचार्य । इनको कटुकर्मप्रकृति-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार कंसार्य नाम से भी अभिहित किया गया है। मपु० २.१४१-१४६, घातिकर्म । ममु० २०.२६१-२६४ ७६.५२५, हपु० १.६४, वीवच० १.४१-४९ कणशीकर-अस्सी दिन तक की मेघवृष्टि । मपु० ५८.२७ कंसारि-कृष्ण। मपु० ७१.४१३ कण्टक-कण्ठक-गले का आभूषण । हपु० ६२.८ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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