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३६६ : जैन पुराणकोश
विदुर-विदेह
पद्मा
विदुर-कौरववंशी पाराशर के मत्स्यकुल में उत्पन्न बुद्धिमान् व्यास
और रानी सुभद्रा के तीसरे पुत्र । ये धृतराष्ट्र और पाण्डु के छोटे भाई थे। इनका विवाह राजा देवक की कन्या कुमुदती के साथ हुआ था । न्यायमार्ग में स्थित पाण्डवों के ये परम हितैषी थे। इन्होंने कौरवों पर विश्वास न करने का पाण्डवों को उपदेश दिया था । पाण्डवों को लाक्षागृह के संकट से बचने के लिए गुप्त रूप से लाक्षागृह में इन्होंने ही सुरंग का निर्माण कराया था। इन्होंने पाण्डवों और कौरवों के मध्य चलते हुए विरोध को देखकर दोनों को आधा-आधा राज्य देकर संतुष्ट करने का धृतराष्ट्र को परामर्श दिया था । दुर्योधन के न मानने पर विरक्त इन्होंने मुनि विश्वकीति से मुनिदीक्षा ले ली थी । हरिवंशपुराण के अनुसार इनकी मां का नाम अम्बा था । राजा दुर्योधन, द्रोण तथा दुःशासन आदि ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। मपु० ७०.१०१-१०३, हपु० ४५.३३-३४, ५२.८८, पापु० ७.११६
११७, ८.१११, १२.८९-१०९, १८.१८७-१९१, १९.६-७ विदूरथ-यादव वंश का एक राजा। यह राजा वसुदेव और रानी
रोहिणी का पुत्र था । हपु० ४८. ६४,५०.८१, ५२.२२ विवेह-जम्बद्वीप का चौथा क्षेत्र । यहाँ विद्यावरों का गमनागमन होता
है । भव्य जिन-मन्दिरों के आधारभूत सुमेरु, गजयन्त, विजया आदि पर्वतों से यह युक्त है । इसका विस्तार तैंतीस हजार. छ: सौ चौरासी योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में चार भाग प्रमाण है । यहाँ वक्षारगिरि और विभंगानदियों के मध्य में सीता-सीतोदा नदियों के तटों पर मेरु की पूर्व और पश्चिम दिशाओं में बत्तीस विदेह हैं । पश्चिम विदेहक्षेत्र के देश और उनकी राज्यधानियाँ निम्न प्रकार है
पूर्व विदेहक्षेत्र के देश एवं राजघानियाँ नाम देश
नाम राजधानी वत्सा
सुसीमा सुबत्सा
कुण्डला महावत्सा
अपराजिता वत्सकावती
प्रभंकरा रम्या
अंकावती रम्यका
पदमावती रमणीया
शुभा मंगलावती
रत्नसंचय
अश्वपुरी सुपमा
सिंहपुरी महापद्मा
महापुरी पदमकावती
विजयापुरी शंखा
अरजा नलिनी
विरजा कुमुदा
अशोका सरिता
वीतशोका इनमें पश्चिम विदेहक्षेत्र के कच्छा आदि आठ देश सीता नदी और नील कुलाचल के मध्य में प्रदक्षिणा रूप से तथा वप्रा आदि आठ देश नील कुलाचल और सीतोदा नदी के मध्य में दक्षिणोत्तर लम्वे स्थित हैं । पूर्व विदेहक्षेत्र के देशों में वत्सा आदि आठ देश सोता नदी और निषिव पर्वत के मध्य में तथा पद्मा आठ देश सोतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य में दक्षिणोत्तर लम्बे स्थित है। यहाँ चक्रवतियों का निवास रहता है। राजधानियाँ दक्षिणोत्तर-दिशा में बारह योजन लम्बी और पूर्व-पश्चिम में नौ योजन चोड़ी, स्वर्णमय कोट और तोरणों से युक्त हैं। अढ़ाई द्वीप में जम्बूद्वीप के दो, धातकीखण्ड के दो और पुष्कराध का एक इस प्रकार पाँच विदेहक्षेत्र होते हैं। इनमें प्रत्येक के बत्तीस-बत्तीस भेद बताये हैं। अतः ढ़ाई द्वीप में कुल एक सौ आठ विदेहक्षेत्र हैं। सभी विदेहक्षेत्रों में मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण तथा आयु एक कोटि पूर्व वर्ष प्रमाण रहती है। प्रत्येक विदेहक्षेत्र में तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलभद्र और नारायण अधिक से अधिक एक सौ आठ और कम से कम बीस होते हैं । चौदहों कुलकर पूर्वभव में इन्हीं क्षेत्रों में उच्चकुलीन महापुरुष थे। इन क्षेत्रों से मुनि अपने कर्मों को नष्ट करके विदेह-देह रहित होकर निर्वाण प्राप्त करते हैं। परिणामस्वरूप क्षेत्र का "विदेह" नाम सार्थक है। मपु० ३.२०७, ४.५३, ६३.१९१, ७६. ४९४-४९६, पपु० ५,२५-२६, ९१, १७१, २४४-२६५, २३.७, १०५, १५९-१६०, हपु० ५.१३
(२) मध्यदेश का एक देश । वृषभदेव के समय में स्वयं इन्द्र ने इसका निर्माण किया था। यह जम्बूद्वीप में स्थित भरतक्षेत्र के आयखंड में है। राजा सिद्धार्थ का कुण्ड नगर इसी देश में था। मपु०
नाम देश
कच्छा
सुकच्छा महाकच्छा कच्छकावती आवर्ता लांगलावर्ता पुष्कला पुष्कलावती वप्रा सुवप्रा महावप्रा वप्रकावती गन्धा सुगन्धा गन्धिका गन्धमालिनी
नाम राजधानी
क्षेमा क्षेमपुरी रिष्टा रिष्टपुरी खड्गा मंजूषा औषधी पुण्डरी किणी विजया वैजयन्ती जयन्ती अपराजिता चक्रा खड्गा अयोध्या अवध्या
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