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३६० : बेन पुराणको
विव-विचित्रक
विकल्मष-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. विघटोवर-रावण का एक सामन्त । अनेक राजाओं के साथ इसने राम १९४
की सेना से युद्ध किया था। पपु० ५७.४९ विकसित-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित वत्सकावती देश की विघ्न-(१) रावण का पक्षधर एक योद्धा । राम के पक्षधर राजा
सुसीमा नगरी का एक विद्वान् । यह राजकुमार प्रहसित का मित्र विराधित ने इसका सामना किया था । पपु० ६२.३६ था । इन दोनों विद्वानों ने ऋद्धिधारी मतिसागर मुनिराज से जीव (२) ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मों का एक आस्रव । इससे तत्त्व की चर्चा सुनकर तप ग्रहण कर लिया था। इसने नारायण पद ज्ञान और दर्शन में अन्तराय आता है । पपु० ५८.९२ की प्राप्ति का निदान किया। आयु के अन्त में शरीर छोड़कर दोनों विघ्नविनायक-रावण के समय का एक अस्त्र । रावण के द्वारा इस महाशुक्र स्वर्ग में इन्द्र और प्रतीन्द्र हुए। वहाँ से चयकर यह पुण्डरी
अस्त्र का युद्ध में व्यवहार किये जाने पर लक्ष्मण ने इसका सिद्धार्थ किणी नगरी में वहाँ के राजा धनंजय और रानी यशस्वती का अति- महा अस्त्र से निवारण किया था । पपु० ७४.१११, ७५.१९ बल नामक नारायण और प्रहसित इसी राजा की जयसेना रानी से विघ्नविनाशक-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
महाबल नामक बलभद्र हुआ। मपु० ७.७०-८२, दे० अतिबल-७ २५.२०६ विकाल-राम का पक्षधर एक योद्धा । यह अनेक राजाओं के साथ विघ्नसबन-राम का पक्षधर एक विद्याधर योद्धा । इसने रावण की ससैन्य समरभूमि में पहुंचा था । पपु० ५८.१३
सेना से युद्ध किया था । पपु० ५८.५ विकालाशन-असमय में आहार लेना । तीर्थङ्कर वृषभदेव ने ऐसे आहार । विचल-राम का पक्षधर एक योद्धा । महासैनिकों के मध्य स्थित रथ का त्याग कर दिया था। मपु० २०.१६० ।
पर सवार होकर इसने रावण की सेना से युद्ध किया था। पपु० विकृत-लिपि के चार भेदों में एक भेद । लोग अपने-अपने संकेत के ५८.१२, १७ अनुसार इसकी रचना कर लेते हैं । पपु० २४.२४
विचिकित्सा-माधुओं को मलिन देखकर उनसे घृणा करना। इसका विक्रम-रावण का पक्षधर एक राजा । वानरवंशी राजाओं द्वारा राक्षसों फल दुःखदायी होता है । दमितारि की पुत्री कनकधी को आर्यिका
की सेना नष्ट किये जाने पर अन्य अनेक राजाओं के साथ यह उनकी से घृणा करने के कारण बहुत दुःख उठाना पड़ा था। मपु० ६२. सहायता के लिए गया था । पपु० ७४.६३-६४
४९९-५०१ दे० निविचिकित्सा विक्रमी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपृ० २५.१७२।।
विचित्र-(१) कुरुवंशी एक नृप । यह राजा चित्र का उत्तराधिकारी विक्रान्त-(१) यादवों का पक्षधर एक अर्धरथ नृप । हपु० ५०.८५,
था । हपु०४५.२७
(२) कुरुवंशी राजा । यह राजा वीर्य का उत्तराधिकारी था। (२) रत्नप्रभा पृथिवी के तेरह इन्द्रक बिलों में तेरहवाँ इन्द्रक
हपु० ४५.२७ बिल । इसकी चारों दिशाओं में एक सौ अड़तालीस और विदिशाओं (३) राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का बाईसवाँ पुत्र । पापु० में एक सौ चवालीस श्रेणीबद्ध बिल हैं। हपु० ४.७६-७७, १०१
८.१९५ १०२
(४) नील पर्वत की दक्षिण-दिशा में सीता नदी के पूर्व तट पर विक्रिद्धि-वैक्रियक ऋद्धियाँ । ये आठ होती है-अणिमा, महिमा,
स्थित एक कूट । इसका योजन एक हजार योजन है। हपु० ५.१९१ गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । मपु० विचित्रकट-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का बयालीसौं नगर । २.७१
मपु० १९.५१, ५३ विक्षेप-तालगत गान्धर्व के बाईस भेदों में तीसरा भेद । हपु० १९.१५० विचित्रगुप्त-धान्यपुर नगर के राजा कनकाभ का गुरू । यह सुभूम विक्ष पिणी-एक प्रकार की धर्म-कथा । ऐसी कथाओं से मिथ्यामतों का चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव था। पपु० २०.१७० खण्डन किया जाता है। मपु० १.१३५
विचित्रचूल-वजायुध के सम्यक्त्व का परीक्षक एक देव । ऐशान स्वर्ग के विग्रह-(१) राजा के छ:-सन्धि, विग्रह, आसन, यान, संशय और इन्द्र ने अपनी सभा में वायुध को सर्वाधिक सम्यक्त्वी होने से विशेष
द्वैधीभाव गुणों में दूसरा गुण । शत्रु तथा उसके विजेता दोनों का पुण्यवान् बताया। यह देव इन्द्र के इस कथन से सहमत नहीं हुआ। परस्पर में एक दूसरे का उपकार करना विग्रह कहलाता है। मपु० अतः परीक्षा करने वज्रायुध के पास गया । इसने अपना रूप बदलकर ६८.६६, ६८
वज्रायुध से पूछा था कि पर्याय और पर्यायी भिन्न हैं या अभिन्न । (२) भोगों का आयतन-शरोर । पपु० १७.१७४
वायुघ ने मन में विचार किया कि यदि दोनों को भिन्न मानते हैं विघट-(१) एक नगर । यह भानुरक्षक के पुत्रों द्वारा बसाये गये दस तो शून्यता की प्राप्ति होती है और अभिन्न मानने पर एकपना । दोनों नगरों में एक नगर था। यहाँ राक्षस रहते थे। पपु० ५.३७३-३७४ के मिलने से संकर दोष आता है। दोनों नित्य मानने से कर्मबन्ध
(२) राम का पक्षधर एक योद्धा । यह अन्य अनेक राजाओं के व्यवस्था नहीं बनती और दोनों को क्षणिक मानने से आपका मत साथ ससैन्य समरांगण में पहुंचा था। पपु० ५८.१५
काल्पनिक ज्ञात होता है अतः समाधान स्वरूप वच्चायुध ने इसे बताया
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