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३४४ : जैन पुराणकोश
(४) विनीता नगरी के राजा सुरेन्द्रमन्यु और उसकी रानी कीर्तिसभा का पुत्र । यह पुरन्दर का सहोदर था। इसने नागपुर ( हस्तिनापुर) के राजा इभवाहन और उसकी रानी चूड़ामणि की पुत्री मनोदया को विवाहा था। हंसी में उदयसुन्दर साले के यह कहने पर कि यदि "आप दीक्षित हों तो मैं भी दीक्षा लूँगा" यह सुनकर मार्ग में मुनि गुणसागर के दर्शन करके यह उनसे दीक्षित हो गया था। इसके साले उदयसुन्दर ने भी दीक्षा ले ली थी । पपु० २१.७५-१२६
(५) तीर्थकर वृषभदेव के सातवें पूर्वभव का जीव जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेव में स्थित पुष्कलावती देश के उत्पलखेटक नगर का राजा। इसकी रानी वसुन्धरा और पुत्र वज्जजंघ था । यह शरद्कालीन मेघों के उदय और विनाश को देख करके संसार के भोगों से विरक्त हो गया था । इसने पुत्र वज्रजंघ को राज्य सौंपकर श्री यमधर मुनि के समीप पांच सौ राजाओं के साथ दीक्षा ले ली। पश्चात् तपश्चर्या द्वारा कर्मों का नाश कर केबलज्ञान प्राप्त करके यह मुक्त हुआ । मपु० ६.२६-२९, ८.५०-५९
(६) जम्बूद्वीप के कौसल देश में स्थित अयोध्या नगर का राजा । इसका इक्ष्वांकु वंश और काश्यप गोत्र था। प्रभंकरी इसकी रानी और आनन्द इसका पुत्र था। मपु० ७३.४१-४३ वप्रभानु —— विद्याधर- वंश का एक राजा । यह वज्रजाणि का पुत्र और वज्रवान् का पिता था। इसका अपर नाम वज्रजातु था। पपु० ५.१९, हपु० १३.२३
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वाभूत - विद्याधर वंश का एक राजा । यह विद्याधर नमि के वंशज राजा सुवन का पुत्र और वज्राभ का पिता था । पपु० ५.१८-१९, हपु० ० १३.२२-२३
मध्य - ( १ ) एक विद्याधर राजा । यह अपने पुत्र प्रमोद को राक्षसवंश की सम्पदा सौंपकर तपस्वी हो गया था । पपु० ५.३९५
(२) दैत्यराज मय का मंत्री । पपु० ८.४३
(३) एक व्रत। इसमें आरम्भ में पाँच और पश्चात् एक-एक कम करते हुए अन्त में एक उपवास करने के पश्चात् एक-एक उपवास को बढ़ाते हुए अन्त में पाँच उपवास किये जाते हैं । इस प्रकार कुल उनतीस उपवास और नौ पारणाएं की जाती हैं । हपु० ३४.६२-६३ ममे पर्वत की पृथिवीकाय रूप छः परिचियों में तीसरी परिधि । इसका विस्तार सोलह हजार पाँच सौ योजन है । हपु० ५.३०५
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वनमालिनी - त्रिपुर नगर के स्वामी वज्रांगद विद्याधर की स्त्री । वांगद भरतक्षेत्र के नन्दनपुर के राजा अमितविक्रम की धनश्री और अनन्तश्री कन्याओं को देखकर उन पर आसक्त हो गया था। उसने उन्हें पकड़कर ले जाना चाहा था किन्तु इससे भयभीत होकर उसे निराश होते हुए दोनों कन्याओं को वंश वन में छोड़कर लौट जाना पड़ा था । मपु० ६३.१२-१७
वच्चमाली - इन्द्रजित् का पुत्र । इसने राम पर उस समय आक्रमण किया था जब राम लक्ष्मण की निष्प्राण देह गोद में लिए हुए थे 1 जटायु
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wanny-Fady के जीव ने इसे भ्रमित कर भगा दिया था । देवों के इस प्रभाव को देखकर इसे अपने ऐश्वर्य से वैराग्य उत्पन्न हो गया । फलस्वरूप सुन्द के पुत्र चारुरत्न के साथ मुनि रतिवेग के पास इसने दीक्षा ले ली थी । पपु० १०८.३३-३६, ६२-६७ वज्रमुख - (१) पद्म-सरोवर का पूर्व द्वार-गंगा नदी का उद्गम स्थान । यह छः योजन और एक कोश विस्तृत तथा आधा कोश गहरा है । इस द्वार पर चित्र विचित्र मणियों से दैदीप्यमान एक तोरण भी विद्यमान है जो नो योजन तथा एक योजन के आठ भागों में तीन भाग प्रमाण ऊँचा है । हपु० ५.१३२, १३६ - १३७
(२) लंका के कोट का एक अधिकारी । यह हनुमान द्वारा मारा गया था । पपु० १२.१९६, ५२.२३-२४, ३०.३० वामुखकुण्ड – एक कुण्ड । गंगा इसी कुण्ड में गिरती है। यह भूमि पर साठ योजन चौड़ा तथा दस योजन गहरा है । हपु० ५.१४११४२
बष्ट (१) उज्जयिनी के राजा वृषभध्वज के योद्धा दृढमुष्टि का पुत्र । इसकी माता वप्रश्री थी। इसका विवाह सेठ विमलचन्द्र की पुत्री मंगी से हुआ था। थोड़े समय बाद मंगी अन्यासक्त हुई । इससे यह दुःखी हुआ और विरक्त होकर इसने मुनि वरचर्म से दीक्षा से की। मपु० ७१.२०९-२४८, हपु० ३३.१०३-१२९
(२) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का मल्ल । धरोहर हड़पने के अपराध में श्रीभूति मंत्री को इस मल्ल के तीस घूसों का दण्ड दिया गया था । मपु० ५९.१४६-१७५
(२) जम्बूद्वीप की पुण्डरीकियो नगरी का एक पुरुष इसकी पत्नी सुभद्रा तथा पुत्री सुमति थी । आगामी दूसरे भव में सुमति कृष्ण की पटरानी जाम्बवती हुई । हपु० ६०.५०-५२
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वारथ - रावण का पक्षधर एक राजा । इसने राम के योद्धाओं के साथ युद्ध किया था । पपु० ७४. ६३-६४ वज्रवर-- मध्यलोक के अन्तिम सोलह द्वीपों में नौवाँ द्वीप और सागर । हपु० ५.६२४
बवान् — एक विद्याधर राजा । यह विद्याधर नमि के वंशज राजा
वज्रभानु अपर नाम वज्रजातु का पुत्र और विद्युन्मुख का पिता था । पपु० ५.१९, हपु० १३.२३-२४
वज्रवोर्य - तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्वभव का पिता । यह जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में पद्म देश के अश्वपुर नगर का राजा था । विजया इसकी रानी तथा वज्रनाभि पुत्र था। यही वज्रनाभि आगे तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुआ । मपु० ७३.३१-३२, ९१-९२ वज्रवृषभनाराच — एक संहनन । इससे शरीर वज्रमय हड्डियों से रचित, वज्रमय वेष्टनों से वेष्टित और वज्रमय कीलों से कीलित होता है । तीर्थकर इस संहनन के धारी होते हैं। इसका अपर नाम वज्रनाराच संहनन है। ० ८.१७५, ०९.६२
वज्रवेग - रावण का पक्षधर एक राक्षस । इन्द्र विद्याधर और रावण के
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