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बच्चधर्म-बबाह
जैन पुराणकोश : ३४३ इसने वनजंघ से किया था । विषय भोगों से विरक्त होकर इसने (४) तीर्थकर पार्श्वनाथ के चौथे पूर्वभव का जीव-विदेहक्षेत्र के अपना साम्राज्य पुत्र अमिततेज को देना चाहा था, किन्तु उसका पद्म देश में स्थित अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य और रानी राज्य नहीं लेने का 'दृढ़ निश्चय जानकर अमिततेज के पुत्र पुण्डरीक विजया का पुत्र । इसने चक्रवर्ती की अखण्ड लक्ष्मी का उपभोग कर को राज्यभार सौंपा था । इसके पश्चात् यह अपने पुत्र, स्त्रियों तथा मोक्षलक्ष्मी के उपभोग हेतु उद्यम किया था। क्षेमंकर भट्टारक से धर्म अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया था। इसके साथ इसकी साठ श्रवण करने के पश्चात् राज्य पुत्र को सौपकर इसने संयम धारण हजार रानियों, बीस हजार राजाओं और एक हजार पुत्रों ने दीक्षा किया और इस अवस्था में अपने पूर्वभव के बैरी कमठ के जीव कुरंग ली थी। यह अवधिज्ञानी था। इसने अपनी पुत्री को बताया था कि भील द्वारा किये गये अनेक उपसर्ग सहे। आयु के अन्त में आराधतीसरे दिन उसका भानजा वज्रजंघ आयेगा और वह ही उसका पति नाओं की आराधना करते हुए समाधिपूर्वक मरणकर सुभद्र नामक होगा। मपु० ६.५८-६०, १०३, ११०, २०३, ७.१०२-१०५, मध्यम अवेयक के मध्यम विमान में यह सम्यक्त्वी अहमिन्द्र हुआ। २४९, ८.७९-८५
मपु०७३.२९-४० (२) एक महामुनि । यह वज्रदत्त मुनि का ही अपर नाम है। बननाराच-एक संहनन । इस संहनन धारी की अस्थियाँ वजोपम होती मपु० ५९.२४८-२७१ दे० वजदत्त
हैं । तीर्थंकरों का शरीर इस संहनन से युक्त होता है । मपु० १५.२९ (३) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यशोधरा वक्षनेत्र-विजयाध की दक्षिणश्रेणी के असुरसंगीत नगर के राजा दैत्यइसकी रानी थी। श्रुतकेवली सागरदत्त इसी के पुत्र थे। मपु० राज मय का मंत्री । पपु० ८.४२-४८ ७६.१३४-१४२
वज्रपंजर-एक नगर । वज्रायुध इसो नगर का राजा था । वजशीला (४) बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य के पूर्वभव के पिता । पपु० उसकी रानी और खेचरभानु पुत्र था। यह इसो नगर से आदित्यपुर २०.२७-३०
के राजा विद्यामन्दिर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में गया था। वनधर्म-राजा सत्यक का पुत्र । यह राजा शान्तन के पुत्र शिवि का पपु० ६.३५७-३५९, ३९६ पौत्र था। इसका पुत्र असंग था। हपु० ४८.४०-४२
वज्रपाणि-(१) विद्याधर नमि के वंशज वज्रास्य का पुत्र । यह वजभानु वनध्वज-विद्याधरवंशी राजा वजदंष्ट्र का पुत्र। यह वज्रायुध का पिता
का पिता था । पपु० ५.१९, हपु० १३.२३
(२) नभस्तिलक नगर का राजा। यह अरिजयपुर के राजा था। पपु० ५.१८, हपु० १३.२२
मेघनाद की पुत्री पद्मश्री को चाहता था जबकि निमित्तज्ञानियों ने वचन-रावण का पक्षधर एक योद्धा। इसने राम के पक्षधर योद्धा
पद्मश्री को चक्रवर्ती सुभौम की रानी होना बताया था। मेघनाद के विराधित से युद्ध किया था। पपु०६०.५२,८६-८७
साथ इसने युद्ध भी किया किन्तु यह सफल न हो सका था । अन्त में वचनाव-रावण का एक सामन्त । इसने सिंहरथ पर आरूढ़ होकर
यह उसी के द्वारा मारा गया । हपु० २४.२-३१ राम की सेना से युद्ध किया था। पपु० ५७.४६-४८ वजनाभ-राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३४
बच्चपुर-(१) राजा सूर्य के पुत्र अमर द्वारा बसाया गया भरतक्षेत्र का
एक नगर । हपु० १७.३३ वचनाभि-(१) तीर्थकर वृषभदेव के तीसरे पूर्वभव का जीव
(२) विजया पर्वत की उत्तरत्रणी का अठावनवाँ नगर । मपु० जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी
१९.८६-८७ के राजा वचसेन और उनकी रानी श्रीकान्ता का पुत्र । विजय, बचप्रभ-(१) कुण्डलगिरि पर्वत की पूर्व दिशा का दूसरा कूट । यहाँ वैजयन्त, जयन्त, अपराजित तथा सुबाहु, महाबाहु, पीठ और महापीठ पंचशिरस् देव रहता है। हपु० ५.६९० ये इसके आठ भाई थे। वज्रदन्त इसका पुत्र था । महाराज वनसेन ने (२) सौमनस वन का एक भवन । इसकी चौड़ाई पन्द्रह योजन, राज्याभिषेक पूर्वक इन्हें राज्य दिया था। ये चक्रवर्ती हुए । इन्होंने ऊँचाई पच्चीस योजन और परिधि पैंतालीस योजन है। हपु० ५. न्यायोचित रीति से प्रजा का पालन किया। इन्हें अपने पिता से ३१९-३२० रत्नत्रय का बोध हुआ था। पुत्र वज्रदन्त को राज्य देकर ये सोलह (३) वानरवंशी राजा वज्रकण्ठ का पुत्र । वचकण्ठ इसे राज्य हजार मुकुटबद्ध राजाओं, एक हजार पुत्रों, आठ भाइयों और धनदेव सौंपकर मुनि हो गया था और इसने भी अपने पुत्र इन्द्रमत के लिए के साथ मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से पिता वज्रसेन मुनि से दीक्षित राज्य देकर मुनि-दीक्षा ले ली थी। पपु० ६.१६०-१६१ . हुए । मुनि के व्रतों का पालन करने से इन्हें तीर्थंकर-प्रकृति का बन्ध वज्रबाहु-(१) विद्याधर नमि के वंश में हुए राजा वजाभ का पुत्र और हुआ । अन्त में शररी त्यागकर सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हए और वज्रांक का पिता । पपु० ५.१९, हपु० १३.२३ वहाँ से चयकर तीर्थकर वृषभदेव हुए। मपु० ११.८-१४, ३९-१११, (२) विद्याधर विनमि का पुत्र । इसकी बहिन सुभद्रा चक्रवर्ती १३.१, पपु० २०.१७-१८, हपु० ९.५९
भरतेश के चौदह रत्नों में एक स्त्री-रल थी। हपु० २२.१०५-१०६ (२) तीर्थकर विमलनाथ के पूर्वभव के पिता । पपु० २०.२८-३० (३) राजा वसु की वंश परम्परा में हुए राजा दीर्घबाहु का पुत्र । (३) तीर्थकर अभिनन्दननाथ के एक गणधर । मपु० ५०.५७
यह लब्धाभिमान का पिता था। हपु० १८.२-३
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