________________
यक्षगीत-यशोपवीत
यक्षगीत - विद्याधरों का एक नगर । इन्द्र विद्याधरों ने यहाँ के निवासी विद्यावरों को यक्ष संज्ञा दी थी । पपु० ७.११८ दे० यक्ष-२ यक्षदत्त- - (१) क्रौंचपुर नगर के राजा यक्ष और रानी राजिला का पालित पुत्र । मित्रवती इसकी माता और बन्धुदत्त पिता था । पपु० ४८. ३६-५९
(२) भरतक्षेत्र में मलय देश के पलाशनगर का गृहस्थ । यह यक्ष का पिता था। पत्नी का नाम यक्षिला और पुत्रों के नाम यक्षलिक तथा यक्षस्व थे । मपु० ७१.२७८-२७९, हपु० ३३.१५७-१६२, दे० यक्ष - ५
यक्षवत्ता - राजा यक्षदत्त की रानी और यक्ष तथा यक्षिल की जननी । इसका अपर नाम यक्षिला था । मपु० ७१.२७८-२७९, हपु० ३३. १५८ दे० यक्ष-५
यशवीजम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में शालिग्राम के निवासी यक्ष और उसकी पत्नी देवसेना की पुत्री इसने धर्मसेन मुनि से व्रत ग्रहण कर मासोपवासी एक मुनिराज को आहार दिया था। इसे अन्त में एक अजगर ने निगल लिया था जिससे मरकर यह हरिवर्ष भोगभूमि में उत्पन्न हुई । इसके पिता का दूसरा नाम यक्षिल था । यक्ष की आराधना से जन्म होने के कारण यह इस नाम से प्रसिद्ध हुई । मपु० ७१.३८८-३९२, हपु० ६०.६२-६७, दे० यक्ष-- ६ यक्षपुर - विद्याधरों का एक नगर । कौतुकमंगल नगर के विद्याधर व्योमबिन्दु की बड़ी पुत्री कौशिकी इसी नगर के निवासी विश्ववा धनिक से विवाही गयी थी । पपु० ७.१२६-१२७ यक्षमाली - किन्नरपुर नगर का विद्याधर राजा । नमि विद्याधर इसका भानजा था। जाम्बव द्वारा नमि विद्यावर को मारने के लिए भेजी गयी माक्षित-लक्षिता विद्या का इसने छेदन करके नमि की रक्षा को थी । मपु० ७१.३६६-३७२
यक्षमित्र भरतशेष के सुजन देश में नगरशोभ नगर के राजा दुमित्र के भाई सुमित्र और वसुन्धरा का पुत्र । किन्नरमित्र का यह अनुज और श्रीचन्द्रा इसकी बहिन थी । मपु० ७५.४३८-४३९, ४७८-४९३, ५०५-५२१
यक्षलिक - कृष्ण के तीसरे पूर्वभव का जीव - भरतक्षेत्र के मलय देश में पलाशनगर के यक्षदत्त और उसकी पत्नी यक्षिला का छोटा पुत्र । यक्षस्व का यह छोटा भाई था। इसका अपर नाम यक्षिल था । हपु० ३३.१५७-१६२, दे० यक्ष--५
- यक्षवर - मध्यलोक के अन्तिम सोलह द्वीपों में तेरहवां द्वीप। यह इसी नाम के सागर से घिरा हुआ है । हपु० ५.६२५
यक्षस्थान - भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ सुरप और कर्षक दो भाई रहते थे जो आगामी भव में उदित और मुदित नामक मुनि हुए । पपु० ३९.१३७-१३९ यक्षस्व - यक्षदत्त का ज्येष्ठ पुत्र । यह यक्षलिक का बड़ा भाई था । इसका अपर नाम यक्ष था । हपु० ३३.१५७-१६२ दे० यक्ष-५ (१) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मंगल देश के पलाशकूट ग्राम का
Jain Education International
जैन पुरागकोश २११
एक वैश्य । यक्षदत्त इसका पिता और यक्षदत्ता माता थी । यक्ष इसका बड़ा भाई था । दयावान होसे से इसका नाम सानुकम्प प्रचलित हो गया था । मपु० ७१.२७८-२८०
(२) महाशुक्र स्वर्ग का एक देव । यह कृष्ण के पूर्वभव का छोटा भाई था इस देव ने कृष्ण को सिंहवाहिनी और गरुडवाहिनी विद्याओं को सिद्ध करने की विधि बताई थी । मपु० ७१.३७९ ३८१ (२) जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरतक्षेत्र के शालिग्राम का एक वैश्य मपु० ७१.३९०, हपु० ६०.६२-६७, दे० यक्ष-६
यक्षिला - ( १ ) तीर्थंकर अरनाथ के संघ की साठ हजार आर्यिकाओं में मुख्य आर्यिका । मपु० ६५.४३
(२) यक्षदत्त की रानी । इसका अपर नाम यक्षदत्ता था । मपु० ७१.२७८-२७९, हपु० ३३.१५७-१६२, दे० यक्षदत्त - २ यक्षलिक —- पलाशकूट ग्राम के वैश्य यक्षदत्त का ज्येष्ठ पुत्र । इसका दूसरा नाम यक्ष था । हपु० ३३.१५७-१५८, दे० यक्ष - ५
यक्षी - तीर्थंकर नेमिनाथ के संघ की एक आर्थिका । मपु० ७१.१८६ यजमानात्म-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १२७
यजुर्वेद- चार वेदों में इस नाम का एक वेद । हपु० १७.८८
यज्ञ - ( १ ) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०२५.१२७ (२) दान देना, देव और ऋषियों की पूजा करना । याग, ऋतु, पूजा, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह इसके अपर नाम हैं । आर्ष और अनार्ष के भेद से इसके दो भेद होते हैं। इनमें तीर्थंकर, गणधर और केवलियों के शरीर से उत्पन्न त्रिविध अग्नियों में परमात्मपद को प्राप्त अपने पिता तथा प्रपितामह को उद्देश्य कर मन्त्र के उच्चारणपूर्वक अष्टद्रव्य की आहुति देना आर्षयज्ञ है । यह मुनि और गृहस्थ के भेद से दो प्रकार का होता है । इनमें प्रथम साक्षात् और दूसरा परम्परा से मोक्ष का कारण है। क्रोधाग्नि, कामाग्नि और उदराग्नि में क्षमा, वैराग्य और अनशन की आहुतियाँ देना आत्मयज्ञ है । मपु० ६७.१९२-१९३, २०० - २०७, २१०
(३) तीर्थंकर वृषभदेव के छब्बीसवें गणधर । हपु० १२.५९ यज्ञगुप्त तीर्थदूर नृषभदेव के उन्यास गणधर । ० १२.६३ यज्ञदत्त - तीर्थङ्कर वृषभदेव के इक्यावनवें गणधर । हपु० १२.६४ यज्ञदेव - तीर्थंकर वृषभदेव के अड़तालीसवें गणधर । हपु० १२.६३ यज्ञपति - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२७ यज्ञबलि - वसुदेव का मित्र । यह विभीषण के पूर्वभव का जीव था । पपु० १०६.१०
यज्ञमित्र - तीर्थङ्कर वृषभदेव के पचासवें गणधर । हपु० १२.६४ यज्ञरज - राजा किष्किन्ध और रानी श्रीमाला का छोटा पुत्र । यह सूर्यरज का छोटा भाई था। इसकी सूर्यकमला एक बहिन भी थी । पपु० ६.५२३-५२४ यज्ञांग - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१२७ यशोपवीत - एक संस्कार । चक्रवर्ती भरत ने ग्यारह प्रतिमाओं के विभाग
--
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org