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भिक्षु-भीम
जैन पुराणकोश : २६१
भिक्षु-शुद्ध भिक्षा का ग्राही अनगार और निग्रन्थ साधु । पपु०
१०९.९० भिण्डिमाल-राम के समय का एक शस्त्र । माल्यवान् ने सोम राक्षस को
इसी शस्त्र के प्रहार से मूच्छित किया था। पपु० ७.९५-९६, १२.
२३६, ५८.३४ भित्तिचित्र-चित्रकला का एक भेद । इसमें दीवार पर विभिन्न रंगों
का प्रयोग कर आकृतियाँ चित्रित की जाती हैं। मपु० ६.१८१,
९.२३ भिन्नांजनप्रभ-रावण का एक सामन्त । पपु० ५७.५३, ६२.३६ भिषावर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४२ भौति रावण को प्राप्त एक विद्या । इस विद्या से शत्रु-पक्ष में भय
उत्पन्न किया जाता है । पपु० ७.३३१ भीम-(१) कृष्ण का पुत्र । हपु० ४८.६९
(२) भरतक्षेत्र का प्रथम नारद । हपु० ६०.५४८
(३) भरतक्षेत्र के मनोहर नगर का समीपवर्ती एक बन । इस वन के निवासी भीमासुर को पाण्डव भीम ने मुष्टि-प्रहार से इतना अधिक मारा था कि विवश होकर वह उसके चरणों में पड़कर उसका दास बन गया था । मपु० ५९.११६, पापु० १४.६७, ७५-७८
(४) भरतक्षेत्र के सिंहपुर नगर का दूसरा स्वामी । मांसभोजी कुम्भ इस नगर का पहला स्वामी था। मपु० ६२.२०५, पापु० ४. ११९
(५) पुण्डरीकिणी नगरी के शिवंकर उद्यान में स्थित एक मुनि । इन्होंने हिरण्यवर्मा और प्रभावती के जीव देव और देवी को धर्मोपदेश दिया था । पूर्वभव में ये मृणालवती नगरी में भवदेव वैश्य थे। इस पर्याय में इन्होंने रतिवेगा और सुकान्त को मारा था। उनके कबूतरकबूतरी होने पर इन्होंने उन्हें विलाव होकर मारा । जब ये विद्याधर और विद्याधरो हुए तब इन्होंने विद्यु च्चोर होकर उन्हें मारा था । अन्त में बहुत दुःख भोगने के पश्चात् ये इस पर्याय में आये और केवली हुए । मपु० ४६.२६२-२६६, ३४३-३४९, पापु० ३.२४४२५२
(६) व्यन्तर देवों का इन्द्र। इसने सगर चक्रवर्ती के शत्रु पूर्णधन के पुत्र मेघवाहन को अजितनाथ भगवान् की शरण में प्रवेश कराया था और उसे राक्षसी-विद्या दी थी। पपु० ५.१४९-१५१, १६०१६८, वीवच० १४.६१
(७) बलाहक और सन्ध्यावर्त पर्वतों के बीच स्थित एक अन्धकारमय महावन । यह हिंसक प्राणियों से व्याप्त था। रावण, भानुकर्ण और विभीषण ने यहाँ तप किया तथा एक लाख जप करके सर्वकामान्नदा आठ अक्षरों की विद्या आधे ही दिनों में सिद्ध की थी। पपु० ७.२५५-२६४, ८.२१-२४
(८) एक विद्याधर । यह रावण का अनेक विद्याओं का धारक तेजस्वी सामन्त था। गजरथ पर आरूढ़ होकर इसने राम के विरुद्ध ससैन्य युद्ध किया था । पपु० ४५.८६-८७, ५७.५७-५८
(९) राम का एक महारथी योद्धा विद्याधर । यह रावण के विरुद्ध लड़ा था । पपु० ५४.३४-३५, ५८.१४, १७ ___ (१०) एक देश । लवण और अंकुश ने यहाँ के राजा को जोतकर पश्चिम समुद्र की ओर प्रयाण किया और वहाँ के राजाओं को अपने अधीन किया था । पपु० १०१.७७
(११) एक शक्तिशाली नृप। यह अयोध्या के राजा मधु को आज्ञा नहीं मानता था। फलस्वरूप अपने भक्त सामन्त वोरसेन का पत्र पाकर मधु ने इसे युद्ध में जीत लिया था। इसका अपर नाम भीमक था । पपु० १०९.१३१-१४०, हपु० ४३.१६२-१६३
(१२) राजा वसु की वंश-परम्परा में हुआ सुभानु नृप का पुत्र । हपु० १८.३
(१३) यादवों का भानजा। यह हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा पाण्डु और उनकी पत्नी कुन्तो का पुत्र था। पाँच पाण्डवों में यह दूसरा पाण्डव था। युधिष्ठिर इसका अग्रज और अर्जुन अनुज था । पराक्रम पूर्वक लड़नेवाले शत्रु वीरों को भी इससे भय उत्पन्न होने के कारण इसे यह सार्थक नाम प्राप्त हुआ था। पितामह भीष्माचार्य ने इसे पाला तथा द्रोणाचार्य ने इसे शिक्षित किया था। कौरवों ने इसे वृक्ष से नीचे गिराने के लिए वृक्ष उखाड़ना चाहा किन्तु कौरव तो वृक्ष न उखाड़ सके । कौरवों ने इसे मारने के लिए पानी में डुबाया था किन्तु यह वहाँ भी बच गया था। सोया हुआ जानकर कपटपूर्वक दुर्योधन ने इसे गंगा में फेंका था किन्तु यह तैरकर घर आ गया था। दुर्योधन ने भोजन में विष देकर भी इसे मारना चाहा था किन्तु इसे वह विष भी अमृत हो गया था । कौरवों ने सर्प द्वारा दंश कराया था परन्तु सर्प-विष भी इसका घात नहीं कर सका था। लाक्षागृह में जलाकर मारने का यत्न भी किया गया था किन्तु इसने भूमि में निर्मित सुरंग की खोज कर अपना और अपने भाइयों का बचाव कर लिया था। इसने मगर रूप में नदी में विद्यमान तुण्डादेवी से युद्ध किया था। देवी इसे निगल गयो थो किन्तु इसने अपने हाथ से उसका पेट फाड़कर उसको पीठ को हड्डी को उखाड़ दिया था । अन्त में इसके पौरुष से पराजित होकर देवी इसे गंगा में छोड़कर भाग गयी थी। इसने पिशाच विद्याधर को हराकर उसकी पुत्री हिडिम्बा को विवाहा था। हिडिम्बा से इसका एक पुत्र हुआ था जिसका नाम घुटुक था। इसने भीम वन में असुर राक्षस को हराया तथा मनुष्य भक्षी राजा बक को पराजित किया था। राजा कर्ण के हाथी को मद रहित कर भयभीत जन-समूह को निर्भय बनाया था। राजा वृषभध्वज ने अपनी दिशानन्दा कन्या इसको विवाही थी। मणिभद्र यक्ष ने इसे शत्रुक्षयकारिणी गदा प्रदान को थी। चूलिका नगरो का राजकुमार कोचक द्रौपदो पर मोहित था। उसकी कुटिलताओं को देखकर द्रौपदी का वेष धारण कर इसने उसे मारा था। कौरव-पाण्डव युद्ध में इसने निन्यानवें कौरवों का वध किया था। दुर्योधन इसी की गदा की मार से मरणोन्मुख होकर पृथिवी पर गिरा था। आयु के अन्त में नेमिनाथ तीर्थंकर से इसने तेरह प्रकार का
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