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२१४ : बैन पुराणकोश
'पद्मावती-पापा (४) हरिवंशी राजा नरवृष्टि की रानी । उग्रसेन, देवसेन और (१६) रुचकगिरि के पश्चिम दिशावर्ती पद्मकूट में रहनेवाली महासेन इसके पुत्र तथा गान्धारी इसकी पुत्री थी। मपु० ७०.१००- एक देवी । हपु० ५.७१३ १०१
(१७) वसुदेव की रानी । हपु० १.८३, २४.३० (५) हस्तिनापुर के राजा मेघरथ की रानी। यह विष्णु और (१८) आठ दिक्कुमारियों में एक दिक्कुमारी । हपु० ८.११० पद्म राजकुमारों की जननी थी। मपु० ७०.२७४
(१९) राजगृही के सागरदत्त सेठ को स्त्री । मपु० ७६.४६ (६) अरिष्टपुर के राजा हिरण्यवर्मा को रानी। रोहिणी इसी को (२०) राजा भोजकवृष्णि की रानी। इसके तीन पुत्र थे-उग्रसेन, पुत्री थी । मपु० ७०.३०७, पापु० ११.३१
महासेन और देवसेन । हपु० १८.१६ (७) मथुरा नगरी के राजा उग्रसेन की रानी । यह कंस की जननी पद्मासन-(१) तीर्थकर अनन्तनाथ के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०. थी। मपु०७०.३३१-३३२, ३४१-३४४
२४ हपु० के अनुसार तीर्थकर अनन्तनाथ के पूर्वजन्म का नाम पद्म (८) चम्पा नगर के सेठ सागरदत्त की पत्नी, पद्मश्री की जननी। है । हपु० ६०.१५३ . मपु० ७६.४५-५०
(२) तीर्थकर विमलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । हपु० ६०.१५३ (९) कृष्ण की आठवीं पटरानी । यह अरिष्टपुर नगर के राजा पपु० के अनुसार विमलनाथ के पूर्वजन्म का नाम नलिनगुल्म है । हिरण्यवर्मा और उसकी रानी श्रीमती की पुत्री थी। पूर्वभवों में यह पपु० २०.२१ उज्जयिनी में विजयदेव की विनयश्री नामा पुत्री, चन्द्रमा की रोहिणी पविमनीखेट-जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में स्थित एक नामा देवी, शाल्मलि ग्राम के विजयदेव की पुत्री, स्वर्ग में स्वयंप्रभा नगर । मपु० ६२.१९१, ६३.२६२-२६३ पापु० ४.१०७ ।। नामा देवी, जयन्तपुर नगर में श्रीधर राजा की पुत्री और तत्पश्चात् पद्मेश-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३३ स्वर्ग में देवी हुई थी। मपु० ७१.१२६-१२७, ४४३-४५८, हपु० पदमोत्तमा-चन्द्राभ नगर के राजा तथा उसकी रानी तिलोत्तमा की ४४.३८, ४२-४३
पुत्री । सर्प द्वारा काटे जाने पर जीवन्धरकुमार द्वारा इसका विष दूर (१०) वीतशोकपुर के राजा चक्रध्वज और उसकी रानी विद्य- किया गया था। राजा ने जीवन्धर के इस कार्य से प्रभावित होकर न्मती की पुत्री । मपु० ६२.३६६
इसका जोवन्धर के साथ विवाह कर दिया था। मपु० ७५.३९१(११) राजपुर के वृषभदत्त सेठ की भार्या । इसने सुव्रता आर्यिका ४०० के पास संयम धारण कर लिया था। मपु० ७५.३१४-३१९ । पवमोत्तर-(१) कुण्डल पर्वतस्थ रजतप्रभ कूट का स्वामी देव । हपु०
(१२) तीर्थकर पार्श्वनाथ की शासनदेवी। पूर्वभव को सर्पिणी पर्याय में अपने पति सर्प के साथ यह जिस काष्ठ-खण्ड में बैठी थी (२) रुचक पर्वतस्थ नन्द्यावर्तकूट का निवासी देव । हपु० ५.७०२ उस काष्ठखण्ड को कमठ की आठवीं उत्तर पर्याय के जीव राजा (३) मेरु पर्वत से पूर्व की ओर सीता नदी के उत्तरी तट पर महीपाल ने अपनी तापस अवस्था में तपस्या के लिए कुल्हाड़ी से स्थित कूट । हपु० ५.२०५ । फाड़ना आरम्भ किया। उस समय महीपाल के दौहित्र कुमार पार्श्व- (४) बत्सकावती देश के रत्नपुर नगर के राजा। ये युगन्धर नाथ भी वहीं खड़े थे । उन्होंने महीपाल को लकड़ी फाड़ने को रोका। जिनेश के उपासक थे । धनमित्र इनका पुत्र था । पुत्र को राज्य देकर वह नहीं माना और उसने कुल्हाड़ी से उस काष्ठखण्ड को फाड़कर आत्मशुद्धि के लिए ये अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये देखा । उसने उसमें क्षत-विक्षत सर्प-युगल को पाया। पार्श्वनाथ ने थे । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके इन्होंने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध मरते हुए इस युगल को नमस्कार मंत्र सुनाकर धर्मोपदेश दिया किया था। आयु के अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर ये महाशुक्र स्वर्ग जिससे अगली पर्याय में यह युगल भवनवासी देव और देवी हुए । में महाशुक्र नाम के इन्द्र हुए। वहां से च्युत होकर ये तीथंकर वासुसर्पिणी पद्मावती हुई और सर्प धरणेन्द्र । जब पाश्वनाथ तपश्चर्या पूज्य हुए । मपु० ५८.२, ७, ११-१३, २०, हपु० ६०.१५३ में लीन थे उस समय कमठ-महीपाल के जीव शम्बर देव के द्वारा (५) तीर्थंकर श्रेयांस के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०.२०-२४ उन पर किये गये घोर उपसर्ग का निवारण इन दोनों ने ही किया (६) रत्नपुर नगर के विद्याधर पुष्पोत्तर का पुत्र । पपु० ६.७-९ था । तब से यह देवी मातृदेवी के रूप में पूजी जाने लगी। मपु० पनस-कटहल । भरतेश ने इसका उपयोग वृषभदेव की पूजा में किया ७३.१०१-११९, १३९-१४१ दे० कमठ
___ था । मपु० १७.२५२ (१३) कुशाग्र नगर के राजा सुमित्र की रानी । यह तीर्थकर मुनि- पनसा-भरतक्षेत्र के मध्य देश की एक नदी। भरतेश की सेना यहां सुव्रत की जननी थी। हपु० १५.६१-६२, १६.२, २०.५६
आयी थी। मपु० २९.५४ (१४) अरिष्टपुर नगर के राजा प्रियव्रत की द्वितीय महादेवी।। पन्नग-नागकुमार जाति के देव । मपु० १९.९३ यह रत्नरथ और विचित्ररथ की जननी थी । पपु० ३९.१४८-१५० पम्पा-चेदि देश के पास इस नाम का एक सरोवर । यहाँ आकर ही (१५) सुग्रीव की बारहवीं पुत्री । पपु० ४७.१३६-१४४
भरतेश की सेना चेदि देश में प्रविष्ट हुई थी। मपु० २९.५५
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