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मालचि-पामावती
मैन पुराणकोश : २१३
इसे पाकर अपने श्वसुर मेघनाद को विद्याधरों का राजा बनाया था।
हपु० २५.२-३, ३१ पद्मसंभूति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
पदमसेन–(१) पश्चिम धातकीखण्ड में स्थित रम्यकावती देश के महा
नगर के प्रजा हितैषी एक राजा । सर्वगुप्त केवली से धर्मतत्त्व को जानकर तथा यह भी जानकर कि उनके मुक्त होने में केवल दो आगामी भव शेष रह गये हैं-उन्होंने अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्य दे दिया। इन्होंने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और उत्कृष्ट तप से तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया। मृत्यु होने पर ये सहस्रार स्वर्ग के विमान में इन्द्र हुए और यहाँ से च्युत होकर तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ हुए । मपु० ५९.२-३, ७-१०, २१-२२
(२) अयोध्या का राजा । इसने पूर्व विदेहक्षेत्र के मंगलावती देश में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन को मारा था। हपु० ६०.
पद्मचि-क्षेमपुर के राजा विपुलवाहन का पुत्र । यह एकक्षेत्र नगर
के वणिक् धर्मदत्त का जीव था। इसने एक मुनि के उपदेश से रात्रिजल का त्याग किया था । फलस्वरूप मरकर यह स्वर्ग में देव हुआ। वहाँ से च्युत होकर यह महापुर नगर में मेरु नामक सेठ और उसकी भार्या धारिणी का पुत्र हुआ । एक समय इसने एक मरणासन्न बैल को पंच नमस्कार मंत्र सुनाया था। मंत्र के प्रभाव से बैल मरकर महापुर नगर में ही छत्रच्छाय का पुत्र हुआ। उसका नाम वृषभध्वज रखा गया था। वृषभध्वज से परिचय होने पर इसकी वृषभध्वज ने अर्चना की थी। अन्त में इसने श्रावक व्रत लेकर वृषभध्वज के साथ जिनमन्दिर और जिनबिम्ब बनवाये तथा समाधिमरण करके यह ईशान स्वर्ग में वैमानिक देव हुआ। यहाँ से च्युत होकर विजया पर्वत के नन्द्यावर्त नगर के राजा नन्दीश्वर का पुत्र हुआ। इसने संयम धारण कर लिया और तप तपते हुए मरण करके यह माहेन्द्र स्वर्ग में देव हो गया। वहां से च्युत होकर यह इस भव में पद्मरुचि
हुआ । पपु० १०६.३०-७६ पद्मलता-(१) पुष्करवरद्वीप के सरित् देश में स्थित वीतशोकपुर के
राजा चन्द्रध्वज और कनकमालिनी की पुत्री । इसने गणिनी अमितसेना के पास संयम धारण किया और मरकर स्वर्ग में देव हुई । मपु० ६२.३६५
(२) पलाश द्वीप में स्थित पलाशनगर के राजा महाबल और उसकी रानी कांचनलता की पुत्री। इसका राजश्रेष्ठी नागदत्त से विवाह हुआ । अनेक उपवास करती हुई मरण करके यह स्वर्ग गयी
और वहाँ से च्युत होकर चन्दना हुई। मपु० ७५.९७-९८, ११८, १३३-१३४, १५३-१५४, १७० पद्मलोचन-राजा धृतराष्ट्र और उसकी रानी गान्धारी का चालीसवाँ
पुत्र । पापु० ८.१९७ पदमवती-(१) सुरसुन्दर और उसकी भार्या सर्वश्री की पुत्री। इसने गान्धर्व-विधि से विवाह किया था। पपु० ८.१०३-१०८।।
(२) मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित क्षेमपुरी नगरी के राजा विपुलवाहन की भार्या । यह श्रीचन्द्र की जननी थी । पपु०
१०६.७५-७६ पद्मविष्टर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२५.१३३ पदमवेविका-विदेहक्षेत्र के स्वर्णमय स्थल में स्थित पोठिका के नीचे-
चारों ओर रत्ननिर्मित छ: वेदिकाओं पर बनी लघु वेदिकाएँ । हपु०
५.१७५-१७६ पदमश्री-(१) चम्पानगर-निवासी सागरदत्त तथा उसकी भार्या पद्मा
वती की पुत्री। इसका विवाह अन्तिम केवली जम्बस्वामी के साथ हुआ था । मपु० ७६.४६-५०
(२) चन्द्रपुर-नगर के राजा चित्राम्बर की रानी तथा चन्द्रानन की जननी । पपु० ६.४०२ (३) अरिंजयपुर के राजा मेघनाद की पुत्री। सुभौम चक्रवर्ती ने
(३) भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए आचार्यों में एक आचार्य । हपु० ६६.२७ पांग-चौरासी लाख कुमुद वर्ष का समय । हपु० ७.२७ पद्मा-(१) लंका के राजा धनप्रभ की रानी और कीर्तिधवल की जननी । पपु० ५.४०३-४०४ ।
(२) रत्नपुर के राजा विद्याधर पुष्पोत्तर की पुत्री । यह पद्मोत्तर की बहिन थी। इसका विवाह मेधपुर के राजा अतीन्द्र के पुत्र श्रीकण्ठ से हुआ था । पपु० ६.२-८, ५३
(३) रावण की रानी । पपु० ७७.९-१४
(४) त्रिशुंग नगर के राजा प्रचण्डवाहन और उसकी रानी विमलप्रभा की पुत्री । इसने अपनी बहिनों के साथ यह निश्चय किया हुआ था कि ये युधिष्ठिर से ही विवाह करेंगी। हपु० ४५.९५-९८, १०४
(५) समवसरण के चम्पक वन की एक वापी । पु० ५७.३४
(६) विदेह क्षेत्र का एक देश। यह सीतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित है । मपु० ६३.२०८-२१५ हपु० ५.२४९-२५०
(७) लक्ष्मी । मपु० ५२.१ पदमाल-विजया की उत्तरपणी के साठ नगरों में एक नगर । हपु०
२२.८६ पद्मावती-(१) पूर्व विदेहस्थ रम्यका देश की राजधानी। मपु० ६३. २०८-२१४, हपु० ५.२६०
(२) एक आर्या । गन्धर्वपुर के राजा वासव की रानी प्रभावती ने इससे दीक्षा ली थी। भद्रिलपुर के राजा मेघनाद की रानी विमलश्री ने भी इसी आर्या से दीक्षा ली थी। मपु० ७.३१, हपु० ६०.११९
(३) इन्द्रपुर नगर के स्वामी उपेन्द्रसेन की पुत्री। यह पुण्डरीक नारायण से विवाही गयी थी। मपु० ६५.१७९
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