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मर्तको सेना - नलिना
नर्तकीसेना – अच्युतेन्द्र की सात प्रकार की सेना में एक सेना । मपु० १०.१९८-१९९
नर्मद - भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखण्ड का भरतेश के भाई के अधीन एक देश । इस भाई ने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की थी और वह दीक्षित हो गया था। हपु० ११.७२, १७.२१, ४५.११३ नर्मदा - (१) पूर्व-दक्षिण आर्यखण्ड की एक नदी । यहाँ भरतेश की सेना आयी थी । यह गम्भीर नदी कहीं मन्द, कहीं तीव्र तथा कहीं टेढ़े-मेढ़े प्रवाह से युक्त है। कुम्भकर्ण का निर्वाण इसी नदी के तट पर हुआ था । मपु० २९.५२, ३०.८२, पपु० १०.६३, ८०.१४०
(२) वसुन्धरपुर के राजा वियोग की स्त्री वसन्तसुन्दरी की जननी । हपु० ४५.७०
नल - किष्कुप्रमोद नगर का राजा एक विद्याधर । यह सूर्यरज के छोटे भाई और सुग्रीव के चाचा ऋक्षरज और उसकी हरिकान्ता रानी का पुत्र तथा नील का अग्रज था। इसने हरिमालिनी अपनी पुत्री हनुमान् को दी थी, राम-लक्ष्मण के साथ सिद्धशिला के दर्शन किये थे और अपने भाई के साथ राम की सहायता की थी। इसी ने बेलन्धर नगर के स्वामी समुद्र विद्याधर को बाहुबल से बाँधा था तथा राम का आज्ञाकारी होने से उसे सम्मान पूर्वक छोड़ते हुए उसी नगर का राजा बना दिया था। इसने युद्ध में रावण के मन्त्री हस्त को रथ रहित करके उसे विह्वल कर दिया था। लंका विजय के पश्चात् इसने राम सेकिष्किन्धपुर का राज्य प्राप्त किया। कुछ समय तक राज्य का भोग करके यह दीक्षित हो गया । पपु० ९.१३, १९.१०४, ४८. १८९-१९५, ५४.३४-३६, ६५०६७, ५८.४५, ५९.१७, ८८.४०, ११९.३९
नलकूबर — दुर्लध्यपुर नगर में राजा इन्द्र द्वारा नियुक्त एक लोकपाल । रावण के आक्रमण करने पर नगर की सुरक्षा के लिए इसने विद्या के प्रभाव से सौ योजन ऊँचा और तिगुनी परिधि से युक्त वज्रशाल नाम का कोट बनाया था। इसकी स्त्री का नाम उपरम्भा था । वह रावण पर मुग्ध थी । उसने अपनी सखी द्वारा रावण के पास अपना सन्देश भेजा था । रावण ने उसे बुलवाकर तथा उससे उसके ही नगर में मिलने का आश्वासन देकर उससे आशालिका विद्या प्राप्त की थी । रावण इसके मायामय कोट को हराकर सेना सहित इसके निकट गया। युद्ध में यह विभीषण द्वारा जीवित पकड़ा गया । रावण ने उपरम्भा को समझाकर इससे मिला दिया । उपरम्भा अत्यधिक लज्जित हुई और प्रतिबोध को प्राप्त होकर शील की रक्षा करती हुई पति में हो सन्तुष्ट हो गयी थी। अपनी स्त्री के व्यभिचार का प्रतिबोध न हो सकने से रावण द्वारा प्रदत्त सम्मान को प्राप्त कर यह पूर्ववत् अपनी स्त्री के साथ रहने लगा था । पपु० १२.७९-८७, १५३
लिव (१) रुचकगिरि के पश्चिम दिशा आठ कूटों में तीसरा कूट। यहाँ पृथिवी देवी निवास करतो है ह० ५.७१२
(२) पूर्व विदेह के चार वक्षारगिरियों में तीसरा वक्षारगिरि ।
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जैन पुराणकोश १९५
यह
नील पर्वत और सीता नदी के मध्य स्थित है । मपु० ६३.२०२, हपु० ५.२२८
(३) आगामी छ कुलकर (मनु) मपू० ७६.४६४ ह५० ६०.५५६
(४) सौधर्मं युगल का आठवाँ इन्द्रक । हपु० ६.४५ दे० सौधर्म (५) चौरासी लाख नलिनांग प्रमाण काल । मपु० ३.११३, ३२०, हपु० ७.२७ दे० काल
(६) एक नगर । राजा सोमदत्त ने यहाँ तीर्थंकर चन्द्रप्रभ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५४.२१७-२१८ नलिन केक - जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में गान्धार देश के विध्यपुर नगर के राजा विंध्यसेन और उनकी रानी सुलक्षणा का पुत्र । अपने नगर के एक वणिक् धनमित्र के पुत्र सुदत्त की स्त्री प्रीतिकरा का इसने अपहरण किया । एक दिन उल्कापात देखने से इसे आत्मज्ञान हुआ। विरक्त होकर अपने दुश्चरित्र की निन्दा करते हुए सीमंकर मुनि के पास इसने दीक्षा ले ली तथा उम्र तप से क्रम-क्रम से केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष लाभ किया। मपु० ६३.९९-१०४
तेरहवें तीर्थकर विमलनाथ के पूर्वभव का नाम पपु०
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२०.२१ नलिनामेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशा में विद्यमान चार वापियों में दूसरी वापी । हपु० ५.३४५
नलिनध्वज - आगामी नवम कुलकर । हपु० ६०.५५७ नलिनपुंगव आगामी दसवां कुलकर । हपु० ६०.५५७ निप्रभ (१) आगामी सात कुलकर मपु० ७६,४६४, पु० ६०.५५६
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(२) पुष्कराचं द्वीप सम्बन्धी पूर्व विदेह के सुकन्छ देश में सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित क्षेमपुर नगर का राजा। इसे सहस्रास्रवन में अनन्त जिनेन्द्र से धर्मोपदेश सुनकर तत्त्वज्ञान हुआ अतः विरक्त होकर सुपुत्र नामक पुत्र को राज्य देकर यह संयमी हुआ । इसने तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। आयु के अन्त में समाधिमरण पूर्वक देह त्याग करके यह सोलहवें स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में अच्युतेन्द्र हुआ । मपु० ५७.२-३, ९-१४ नलिनराज - आगामी आठवाँ कुलकर । हपु० ६०.५५६ नलिनांग - पद्मप्रमित आयु में चौरासी का गुणा करने से प्राप्त काल । मपु० ३.२२०, २२३ दे० काल, हपु० के अनुसार चौरासी लाख पद्म का एक नलिनांग होता है । हपु० ७.२७ मलिना - (१) मेरुपर्वत को उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशा में विद्यमान चार वापियों में प्रथम वापी । हपु० ५.२४५
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(२) मेरु पर्वत की पूर्व-दक्षिण (आग्नेय) दिशा में स्थित चार वापियों में दूसरी वाली ०५.२३४
(३) विदेह क्षेत्र की बत्तीस नगरियों में एक नगरी । मपु० ६३.२११
(४) हेमाथ नगर के राजा मित्र की रानी जीवंबर को सास मपु० ७५.४२०-४२८
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