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चन्द्राभ-चपलबेग
१२४ : जैन पुराणकोश
(२) रावण की अठारह हजार रानियों में एक रानी। पपु० ७७.१२
(३) विजया स्थित रत्नपुर नगर के विद्याधर राजा रलरथ की रानी, मनोरमा की जननी । पपु० ९३.१-२ चन्द्राभ-(१) ग्यारहवें कुलकर। ये अभिचन्द्र कुलकर के पुत्र थे।
इन्होंने पल्य के दस हजार करोडवें भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालनपालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था। पपु० ३.८७, हपु० ७.१६२-१६४, पापु० २.१०६ ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे। चन्द्रमा के समान जीवों के आह्लादिक होने से ये सार्थक नामधारी थे। इनके समय में पुत्र के साथ रहने का भी समय मिलने लगा था। मपु० ३.१३४-१३८
(२) विजयाध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । मपु० १९.५०, ५३, ७५.३९०
(३) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहा पटल । हपु० ४.५४ दे० खरभाग
(४) विजयार्घ पर्वत के धु तिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । मपु० ६२. ३६-३७,७४, १३४, वीवच० ३.७३-७४
(५) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा। बहुरूपिणी विद्या की साधना में रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था। पपु० ५८.३-७, ७०, १२-१६
(६) वसुदेव के भाई अभिचन्द्र का तीसरा पुत्र । हपु० ४८.५२ (७) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । हपु० २७.११७
(८) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था। हपु० २७.१२०-१२१
(९) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । हपु० ३१.२८
(१०) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त और नन्दिनी का पुत्र । मपु० ७५.५२७.५२९ चन्द्राभा-(१) वटपुर नगर के राजा वीरसेन की भार्या । राजा मधु ने वीरसेन को धोखा देकर इसे अपनी स्त्री बनाया तथा उसे पटरानी का पद देकर मनचाहे भोग-भोगने लगा था । अपने पूर्व पति को अपने वियोग में दुखी देखकर वह द्रवित हो गयी । इसने मधु को भी उसकी दीन-दशा दिखाई। इधर राज-पुरुषों ने मधु से पूछा कि परस्त्री सेवी पुरुष को कौन-सा दण्ड दिया जावे। इसने उत्तर दिया कि उसके हाथ-पैर सिर काट दिये जाय । राजपुरुषों ने मधु से कहा कि परस्त्री हरण का अपराध तो उन्होंने भी किया है। इससे मधु बहुत लज्जित हुआ तथा विरक्त होकर विमलवाहन मुनिराज से उसने दीक्षा ले ली। इसने भी आर्यिका के व्रत स्वीकार कर लिये। पपु० १०९. १३६-१६२, हपु० ४३.१६३-२०३
(२) सुग्रीव की तेरह पुत्रियों में प्रथम पुत्री। यह राम के गुण- श्रवण कर स्वयंवरण की इच्छा से हर्षपूर्वक उनके पास आयी थी। पपु० ४७.१३६-१३७
चन्द्रावत-राजसवंशी एक राजा, इसने लंका में राज्य किया था। पपु.
५.३९८ चन्द्रावर्तपुर-एक नगर । यहाँ का राजा आनन्दमाल था। यह भी विद्याधर राजा वह्निवेग और उसकी रानी वेगवती से उत्पन्न आहल्या
के स्वयंवर में आया था । पपु० १३.७५-७८ चन्त्रिणी-(१) पश्चिम विदेह क्षेत्रस्थ रत्नसंचयनगर के राजा महाघोष __ की भार्या । यह पयोबल की जननी थी । पपु० ५.१३६-१३७
(२) भरत की भाभी । पपु० ८३.९४ चन्द्रोदय-(१) एक चूर्ण । इसे वैष्णवदत्त की पुत्री सुरमंजरी ने बनाया
था। यह चूर्ण वातावरण को तत्काल सुगन्धि से व्याप्त कर देता था। मपु० ७५.३५०-३५७
(३) एक पर्वत । इसी पर्वत पर कुमार जीवन्धर ने वनक्रीडा की थो। यहीं एक मरणासन्न कुत्ते को नमस्कार मंत्र सुनाकर जीवन्धर ने उसे यक्ष-गति प्राप्त करायी थी। मपु० ७५.३५९-३६५
(३) विनीता नगरी के राजा सुप्रभ और प्रह्लादना का पुत्र । यह सूर्योदय का सहोदर था। यह वृषभदेव के साथ दीक्षित हुआ था किन्तु मुनिपद से भ्रष्ट होकर यह मरीचि का शिष्य हो गया । मरकर यह नाग नगर में राजा हरिपति को रानी मनोलूता से कुलकर नामक
पुत्र हुआ । पपु० ८५.४५-५१ चन्द्रोदर-सूर्यरज का उत्तराधिकारी अलंकारोदय का एक विद्याधर
राजा । खरदूषण ने इसे निकालकर वहाँ का राज्य प्राप्त किया था। इसके मर जाने से इसकी गर्भवती पत्नी अनुराधा ने मणिकान्त नामक पर्वत की एक शिला पर एक शिशु को जन्म दिया और उसका नाम विराधित रखा । पपु० १.६७, ९.३७-४४ चपल-(१) विभीषण का एक शूर सामन्त । यह विभीषण के साथ हंसद्वीप में राम के पास गया था। पपु० ५५.४०-४१
(२) रावण का एक योद्धा । यह राम की सेना से लड़ने के लिए रावण के साथ गया था। पपु० ५७.५८ चपलगति-विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी के गण्यपुर नगर के राजा
सूर्यप्रभ (अपरनाम सूर्याभि) और उसकी रानी धारिणी का तीसरा पुत्र । चिन्तागति और मनोगति इसके बड़े भाई थे। इन तीनों ने अरिजयपुर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेना की पुत्री प्रीतिमती के साथ गतियुद्ध में भाग लिया था। मनोगति और चपलगति तो हार गये और चिन्तागति जीत गया। चिन्तागति ने चाहा कि प्रीतिमती उसके छोटे भाई का वरण कर ले। प्रीतिमती ने यह बात नहीं मानी और उसने विवृता नाम की आर्यिका से आर्यिका की दीक्षा ले ली । उधर यह और इसके दोनों बड़े भाई भी दमवर मुनि के निकट दीक्षित हो गये तथा आयु के अन्त में तीनों भाई माहेन्द्र स्वर्ग के अन्तिम पटल में सात सागर की आयु प्राप्त कर सामानिक
जाति के देव हुए । मपु० ७०.२७-३७, हपु० ३४.१७ चपलवेग-(१) चन्द्रगति विद्याधर का एक विद्याधर भृत्य । चन्द्रगति भामण्डल के लिए सीता को प्राप्त करना चाहता था। इसलिए उसने इसे जनक को हरकर लाने के लिए भेजा। इसने सुन्दर घोड़े का रूप
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