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३.
पुराणों में आये नामों के शब्द संकलित हुए हैं ऐसे चार कोश हैं - १. वृहज्जैनशब्दाणंव, २. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, जैन लक्षणावली, ४. डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित/अनुदित पुराणों के अन्त में दी गई शब्दानुक्रमणिकाएँ । इनमें नवादा के द्वितीय खण्ड को देखने से ज्ञात होता है कि 'पाण्डर पुराण' और 'वीर वर्धमान चरित' के समय इसमें नहीं है। महापुराण, पद्मपुराण और हरिवंशपुराण के सम्मिलित शब्दों की भो संक्षिप्त जानकारी ही दी गई है। पुराणों से ज्ञात सम्पूर्ण वृत्त का इनमें अभाव है । 'लक्षणावली' के शब्द संकलन में पद्मपुराण, महापुराण और हरिवंशपुराण इन पुराणों का ही उपयोग हुआ है जैसाकि विद्वान् सम्पादक ने अपनी विस्तृत प्रस्तावना के पृष्ठ ४८-४९ पर स्वयं स्वीकार किया है कि इन पुराणों का भी केवल कुछ नामों के लिए ही जिनकी सूची भी सम्पादक ने दी है,
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उपयोग हुआ है ।
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डॉ०
साहित्याचार्य ने पद्मपुराण, महापुराण और हरिवंशपुराण इन तीन प्राचीन पुराणों का सम्पादन तथा अनुवाद किया है। इन तीनों में से महापुराण के द्वितीय भाग 'उतरपुराण' और हरिवंशपुराण की ही उन्होंने अकारादिक्रम से पदानुक्रमणिका दी है, पद्मपुराण और आदिपुराण की नहीं दो इन शब्दानुक्रमणिकाओं में दी गई जानकारी अति संक्षिप्त है ।
स्पष्ट है कि उक्त कोशों की तैयारी में पद्मपुराण, महापुराण एवं हरिवंशपुराण इन तीनों पुराणों का ही उपयोग हुआ है । मात्र जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में पाण्डवपुराण को भी लिया गया है। वर्तमान में तीर्थंकर महावीर का शासन होने से 'वीरवर्धमान चरित' का उपयोग भी आवश्यक था जिसे छोड़ दिया गया। इन कोशों में दी गई नामों संबंधी जानकारी इतनी संक्षिप्त है कि पुराण अध्येताओं की समस्याओं का उससे यथेष्ट निराकरण नहीं हो पाता। कहीं-कहीं सन्दर्भ भी गलत प्रकाशित हुए हैं जिससे उनको कठिनाईयाँ और भी बढ़ जाती हैं।
पुराणों के अध्ययन में बढ़ती हुई सामाजिक अभिरुचि को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि पुराणों के अध्ययन में आनेवाली कठिनाईयों के निवारणार्थ एक उपयोगी जैन पुराणकोश तैयार हो जिसमें सामाजिक अभिरुचि के जैन पुराणों को सम्मिलित किया गया हो। ऐसे कोश के अभाव में पाठकों को आज विद्वानों की खोज करनी पड़ती है । इसके लिए उन्हें समय और अर्थ दोनों खर्च करने पड़ते हैं। प्रथम तो विद्वान् ही उपलब्ध नहीं होते। सौभाग्य से मिल जायें तो रोजी-रोटी के अर्जन की व्यस्तता के कारण विद्वान् उनका यथेष्ट सहयोग नहीं दे पाते । फलस्वरूप पाठकों की समस्याएँ. क्यों की त्यों रहती है।
श्री राणा प्रसाद शर्मा द्वारा सम्पादित एक पौराणिक कोश बाराबंकी ज्ञान मण्डल लि० से सम्वत् २०२८ में प्रकाशित हुआ है । वैदिक पुराण अध्येताओं को उनके अध्ययन में उत्पन्न कठिनाईयों का समाधान इस कोश से प्राप्त हो जाता है, किन्तु जैन पुराण अध्येताओं की समस्याएँ आज तक यथावत् है ।
अभिनव प्रयत्न
प्रसन्नता का विषय है कि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के तत्कालीन सभापति श्री ज्ञानचन्द्र कमेटी का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। प्रबंधअर्पित किया और इस संस्थान का नाम जैनविया कार्य की सफलता के लिए परामर्शदाता के रूप में मेरे संस्थान की बहुमुखी योजना तैयार की और उसके
खिन्दूका की प्रेरणा से सन् १९८२ में अतिशय क्षेत्र की प्रबंधकारिणी कारिणी कमेटी ने सर्वसम्मति से इस कार्य के निधन का दायित्व मुझे संस्थान रखा। संस्थान की स्थापना श्रीमहावीरजो में की गई। इस साथ डॉ० कमलचन्द सोगानी को योजित किया। डॉ० सोगानी ने समीक्षण के लिए ख्याति प्राप्त निम्न विद्वानों को आमंत्रित किया
१. डॉ० दरबारीलाल कोठिया, वाराणसी
२. डॉ० नेमीचंद जैन, इन्दौर
२. डॉ० गोकुलचंद जैन, वाराणसी
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