________________
400
BRHAT-KATHAKOŚA
Read
Story 56
प्राप्तां
Story
67
त्वन्यत्त्वं
68
69
Verse 32a 36a 460 53a 39a 60a 76d 107d
महादेव्याः अथाहाय्य सारां यशःशुली दूतैर्नृपा कुष्टेन
Read प्रविश्यैवं शुचा ग्रस्त साऽस्माभिर्द्वि लता भार्या चलकर्णः जात्यश्वा कौशाम्बिका चैत्यगेहे 'मानसाः
57
शृण्वेक
1406
शाधि
Verse 283a 4090 4146 425a 4280 246 44 156 193 255d. 309a 405a 414a 429d 435c 446 4606 4750 478a 490a 492a
नैमित्तिकेन चातुरङ्गेण °निदेशतः तत्पुरेऽवि यथावं
सा
ज्ञेयोऽपरों विगतोपपदः द्विसागरं श्रावकाणां पुरे
1470 12a 26d 370 10 1c 23d 41c 86a 123d 135d 143c 166d 1840 2026 2496 269b 276d 13d 170 1c 8d 85d 131a
गृहीतः समार्पयत् 'नोच्छिष्ट "दुजयिनी कीयोघो आनीतः भीमः तन्मांसं 'कर्माऽवि स जीव त्वदचोऽस 'तारक जरन्ताजी नरेन्द्रः खाज्ञाताः
50
ब्रूषेऽनि
गोपोऽशु नीतेऽथो वन्ध्या वल्लीव देवीवाक्य क्षोभेण
चमम्
भोगान्
33d. 15a 236 58d 60a 706 79c 18c 46a 46a 20a
16 390 21-26
73d. 131d 2320 2360 160 210 90d 69d. 846 930
विहायान्यन्न परिज्ञातावावां साधु दी श्रावकेण सज्जनाः दैतांस्तदा
165a
देवी ज सौषधि प्रविश्य 'दिशो भा विद्या नि पराम् प्रतिज्ञाऽशो नगरे मेऽसौ कु षष्टिः पापोपादान निःस्पृह विद्युइंष्ट्रः पञ्च र परीक्ष्यताम् कलखाना मधुरा या समन्वितात् लौहीभि
पृष्ठं
171c 184 239d
60 14d 55d 60d 133c 134a 1750 240d 258a 120
कल्लालाश्छे श्रावकाणां कुर्वन् स्ते उत्तिष्ठते "वेलायामागत्य
परायणाः
प्राप
नभोध जाताः
संज्ञाया
79
संघेभ्यः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org