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कथाकोशः
श्रीमान् साहू शान्तिप्रसादजी और उनकी विदुषी पत्नी श्रीमती रमा जैन ने इस ग्रन्थमालाको जो महान् संरक्षण प्रदान किया है उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं । हमारे कतिपय जैन भण्डारोंमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंशके छोटे-बड़े अनेक ग्रन्थ उपेक्षित पड़े हुए हैं । जैन साहित्य के क्षेत्र में कार्य करनेवाले सभी उत्साही विद्वानोंको चाहिए कि वे समयका लाभ उठाते हुए उनके सम्पादन में अपना सहयोग दें। सभी विद्वानोंसे हमारा यह अनुरोध है कि हमारे आचार्य जो अमूल्य साहित्य उत्तराधिकारमें हमारे लिए छोड़ गये हैं, हम अपना कर्तव्य मानकर उसे प्रकाश में लायें |
डॉ. हीरालाल जैनके स्वर्गवासी हो जानेपर उनके पुराने सहयोगी और अभिन्न मित्र डॉ. उपाध्ये इस दिशा में उनके सारे कार्यभारको एकाकी ही उठाये हुए हैं, जो श्लाघनीय है । भारतीय ज्ञानपीठके संचालक मण्डलने मुझे उनका सहयोगी चुना इसके लिए मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ ।
डॉ. उपाध्येने कथाकोशका सुसम्पादन कर एक और सुन्दर संस्करण इस ग्रन्थमालाको दिया जिसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ । यह अवश्य ही इस मालाका एक सुन्दर पुष्प प्रमाणित होगा ।
- कैलाशचन्द्र शास्त्री
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