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५. उपवासफलम् ५ क्षपकस्याने नृत्यन्नवदत् -
पिच्छह पिच्छह श्रोदनमुंडं अच्छरमझगयं रमणिज्ज।
जेण व तेण व कारणएणं पव्वइदव्वं होइ नरेणं ॥ इति । एतदर्शनेन सकलजनकौतुकमासीत् । विदिततवृत्तान्ता भव्याः केचिद्दीक्षिताः, केचिद्विशेषाणुव्रतानि जगृहुः । जयवर्मा स्वतनयश्रीवर्मणे राज्यं दत्त्वा बहुभिस्तन्मुनिनिकटे दीक्षितः। सर्वेऽपि यथोचितां गतिं ययुः । नन्दिमित्रचरो देवो देवलोकादागत्य त्वं जातोऽ. सोति निशम्य संप्रति-चन्द्रगुप्तो जहर्ष । तं नत्वा पुरं विवेश सुखेन तस्थौ।
एकस्यारात्रे पश्चिमयामे षोडश स्वप्नान् ददर्श कथम् । रवेरस्तमनम् १, कल्पद्रुमशाखाभङ्गम् २, आगच्छतो विमानस्य व्याघुटनम् ३, द्वादशशीष सर्पम्४, चन्द्रमण्डलभेदम्५, कृष्णगजयुद्धम्६, खद्योतम्७, शुष्कमध्यप्रदेशतडागम्ब, धूमं ६, सिंहासनस्योपरि मर्कटम्१०, स्वर्णभाजने तैरीयीं भुआनंश्वानम् ११, गजस्योपरि मर्कटम् १२, कंचारमध्ये कमलम् १३, मर्यादोल्लंघितमुदधिम् १४, तरुणवृषभैर्युक्तं रथम् १५, तरुणवृषभारूढान् क्षत्रियांश्च १६, ततोऽपरदिनेs. नेकदेशान् परिभ्रमन् संघेन सह भद्रबाहुः स्वामी आगत्य तत्पुरं चर्यार्थ प्रविष्टः श्रावकगृहे सर्वर्षान् दत्त्वा स्वयमेकस्मिन् गृहे तस्थौ । तत्रात्यव्यक्तों बालोऽवदत् 'वोलह वोलह' इति । आचार्योऽपृच्छत् केती वरिस' इति । बालो 'बारा वरिस' इत्यब त। ततो अलाभेन सूरिरुद्यानं ( मलमें देखिये ) अर्थात् देखो देखो ! जो नन्दिमित्र केवल भोजनके निमित्तसे दीक्षित हुआ था वह अब रमणीय देव होकर अप्सराओंके मध्यमें स्थित है। इसलिए मनुष्यको जिस किसी भी कारणसे संन्यास लेना ही चाहिए। ____ इस देवको देखकर सब ही जनोंको आश्चर्य हुआ। नन्दिमित्रके उक्त वृत्तान्तको जानकर कितने ही भव्य जीव दीक्षित हो गये और कितनोंने विशेष अणुव्रतोंको ग्रहण कर लिया । जयवर्मा राजाने अपने पुत्र श्रीवर्माके लिए राज्य देकर उक्त मुनिराजके ही निकटमें बहुत जनोंके साथ दीक्षा ले ली। ये सब ही यथायोग्य गतिको प्राप्त हुए । नन्दिमित्रका जीव जो देव हुआ था वह स्वर्गसे च्युत हो कर तुम हुए हो । इस प्रकार अपने पूर्व भवोंके वृत्तान्तको सुनकर सम्प्रति चन्द्रगुप्तको बहुत हर्ष हुआ। वह मुनिको नमस्कार करके नगरमें वापिस गया और सुखसे रहने लगा।
उसने एक दिन रात्रिके अन्तिम पहरमें इन पोलह स्वप्नोंको देखा- (१) सूर्यका अस्त होना, (२) कल्पवृक्षकी शाखाका टूटना, (३) आते हुए विमानका वापिस होना, (४) बारह सिरोंसे युक्त सर्प, (५) चन्द्रमण्डलका भेद, (६) काले हाथियोंका युद्ध, (७) जुगुन , (८) मध्य भागमें सूखा हुआ तालाब, (९) धुआँ, (१०) सिंहासनके ऊपर स्थित बन्दर, (११) सुवर्णकी थालीमें खीर खाता हुआ कुत्ता, (१२) हाथीके ऊपर स्थित बन्दर, (१३) कचरेमें कमल, (१४) मर्यादाको लाँघता हुआ समुद्र, (१५) जवान बैलोंसे संयुक्त रथ और (१६) जवान बैलोंके ऊपर चढ़े हुए क्षत्रिय । तत्पश्चात् दूसरे दिन अनेक देशोंमें विहार करते हुए भद्रबाहु स्वामी संघके साथ वहाँ आये और आहार के लिए उस नगरके भीतर प्रविष्ट हुए । वे सब ऋषियोंको विविध श्रावकोंके घर भेजकर स्वयं भी एक श्रावकके घरपर स्थित हुए। वहाँपर अतिशय अव्यक्त बोलनेवाला एक बालक बोला कि जाओ जाओ । इसपर आचार्यने पूछा कि कितने वर्ष ? बालकने उत्तर दिया 'बारह वर्ष'।
१. जपन्नवदति बद्वदति । २ प श. पिछ ओदन ब पेछह ओदन। ३. ब कारणेणं । ४. ब नरोणेति । ५. ज प श प्रवेश । ६. ज ब कत्वार । ७. ब दिनेकदेशान् । ८. ब तत्राप्यव्यक्तो। ९. श
वरस । १०. ब बारस । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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