________________
प्रस्तावना
तिलोयपण्णत्ति, कल्पसूत्र एवं विशेषावश्यकभाष्यमें श्रेषठशलाका पुरुषों अर्थात् २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव, और ९ प्रतिवासुदेव, इन महापुरुषोंके जीवन चरित्र सम्बन्धी नामों और घटनाओंके संकेत पाये जाते हैं। क्रमशः इन चरित्रोंने रीतिबद्ध स्वरूप धारण किया। कवि परमेश्वर आदि कुछ प्राचीन कथालेखकोंकी कृतियां हमें अनपलब्ध हैं, तथापि जिनसेन-गुणभद्र एवं हेमचन्द्रकृत त्रिषष्ठिपुराण संस्कृतमें, व शोलाचार्य तथा भद्रेश्वरकृत प्राकृतमें, पुष्यदन्तकृत अपभ्रंशमें, चामुण्डरायकृत कन्नडमें और अज्ञातनामा कविकृत श्रीपुराण तमिलमें अब भी प्राप्त हैं। इन बृहत्पुराणोंके अतिरिक्त आशावर, हस्तिमल्ल आदि कृत संक्षिप्त रचनाएँ भा उपलब्ध हैं। इनमें जो लोक-रचना एवं धार्मिक सिद्धान्त व अवान्तर कथाओंका विवरण सम्मिलित पाया जाता है उनसे वे बहुमान्य पुराणोंकी कोटिमें गिनी जाती हैं।
दूसरी श्रेणी में प्रत्येक तीर्थकर व उनके समकालीन विशेष महापुरुषोंके वैयक्तिक चरित्र है। निर्वाणकाण्डमें अनेक महापुरुषोंको नमस्कार किया गया है जिनके चरित्र पश्चात-कालीन रचनाओं में वणित है। प्राकृत. संस्कृत. कन्नड व तमिल में वणित तीर्थंकरोंके चरित्रोंमें परम्परागत विवरण होते हए भी अलंकारिक काव्यशैलोका अनुकरण पाया जाता है। प्राकृतमें लक्ष्मणगणिकृत सुपाव तीर्थकरके चरित्रमें सम्यक्त्व व बारह व्रतोंके अतिचारके दृष्टान्त रूप इतनी अवान्तर कथाएँ आयी हैं कि उनसे मल कथाकी धारा कहीं-कहीं विलुप्त-सी हो गयी है। उसी प्रकार गुणाचन्द्रकृत प्राकृत महावीरचरित्र भी है, तथा संस्कृतमें हरिश्चन्द्रकृत धर्मनाथचरित्र व वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित्र, एवं कन्नडमें पम्प, रन व पोन्न कृत आदिनाथ, अजितनाथ व शान्तिनाथके चरित्र । जैन परम्परानुसार राम मनिसुव्रत तीर्थकरके, एवं कृष्ण नेमिनाथके समकालीन थे। अतएव इनके चरित्र व तत्सम्बन्धी कथाएं अनेक जैन ग्रन्थोंमें वर्णित हैं। विमलसूरिकृत पउमचरियं (प्राकृत), रविषेणकृत पदमचरित ( संस्कृत ), व स्वयंभकृत पउमचरिउ ( अपभ्रंश ) में राम सम्बन्धी आख्यानोंका रोचक समावेश है। कृष्णवासुदेव सम्बन्धी अनेक उल्लेख अर्धमागधी आगमोंमें भी पाये जाते हैं। यद्यपि वहाँ उन्हें ईश्वरका अवतार नहीं माना गया, तथापि वे अपने युगके एक विशेष महापुरुष स्वीकार किये गये है । पाण्डवोंके भी उल्लेख आये हैं, किन्तु वैसे प्रमुख रूपसे नहीं जैसे महाभारतमें । भद्रबाहुकृत वासुदेव चरित. का उल्लेख मिलता है, किन्तु यह ग्रन्थ अभीतक प्राप्त नहीं हो सका। संघदासकृत वसुदेवहिंडी (प्राकृत ) में वसुदेवके परिभ्रमणके अतिरिक्त अवान्तर कथाओंका भण्डार है। यह रचना गुणाढयकृत बृहत्कथाके समतोल है, और उसमें चारुदत्त, अगडदत्त, पिप्पलाद, सगरकुमार, नारद, पर्वत, वसु, सनत्कुमार आदि प्रसिद्ध कथानायकोंके आख्यानोंकी भरमार है। संस्कृतमें जिनसेनकृत हरिवंशपुराण तथा स्वयंभू व धवलकृत अपभ्रंश पुराणोंमें वसुदेवहिंडोसे मेल खातो हुई बहुत-सी सामग्री है। अनेक भाषाओंमें सैकड़ों गद्य व पद्यात्मक जैन रचनाएँ हैं जिनमें जीवंधर, यशोधर, करकंडु, नागकुमार, श्रीपाल आदि धार्मिक नायकोंके चरित्र वर्णित हैं, धार्मिक व्रत-उपवासादिके सुफल तथा सुकृत-दुष्कृत्योंके अच्छे बुरे परिणाम बतलाये हैं। इनमें-के कुछ नायक पौराणिक हैं, कुछ लोक-कथाओंसे लिये गये हैं और कुछ काल्पनिक भी हैं । गद्यचिन्तामणि, तिलकमञ्जरी, यशस्तिलक चम्पू आदि कथा, आख्यान, चरित्र आदि रचनाएं आलंकारिक शैलीके उत्कृष्ट उदाहरण है। जैन मुनिका यह एक विशेष गुण है कि वह अपने धार्मिक उपदेशोंको कथाओं द्वारा स्पष्ट और रोचक बनावे । स्वभावतः काव्यप्रतिभा सम्पन्न अनेक जैन मुनियोंने कथा-साहित्यको परिपुष्ट करने में अपना विशेष योगदान दिया है।
कथाओंकी तृतीय श्रेणी भारतीय साहित्यकी एक विशेष रोचक धाराका प्रतीक है। यह है रोमांचक रूपमें प्रस्तुत धार्मिक कथा । इस श्रेणीको उल्लिखित प्रथम रचना थी पादलिप्तकृत तरंगवती (प्राकृत ) जो अब मिलती नहीं है। किन्तु उसके उत्तरकालीन संस्करण तरंगलोलासे ज्ञात होता है कि उस पूर्ववर्ती कथामें बड़े चित्ताकर्षक साहित्यक गुण थे। उसके पश्चात् कवित्व और साहित्यके अतिशय प्रतिभावान लेखक हरिभद्रकृत समराइच्चकहा है जिसे उन्होंने परम्परागत नामावलीके आधारसे प्राकृत गद्यकथाके रूपमें निदानके दुष्परिणामोंको बतलानेके लिए लिखा। इसी शैलीको सिद्धर्षिकृत उपमिति-भव-प्रपंच-कथा है जो संस्कृत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org