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देशी शब्दकोश
अंगारइय-घुण कीट द्वारा खाया हुआ--'घुणकाणियं अंगारइयं वा वुत्तयं
होति' (निचू ४ पृ ६६) । अंगालिअ-ईख का टुकड़ा, गंडेरी (दे १।२८)। अंगुजट-अंगूठा (आचू पृ ३५२) । अंगुट्ठी-१ चूंघट-'रंगम्मि नच्चियाए, अलाहि अंगुटिकरणेणं' (उसुटी प ५४;
दे ११६) । २ अंगूठा (प्रसा २००)। अंगुत्थल-अंगूठी (दे ११३१) । अंगुलिणी-प्रियंगु, वृक्ष-विशेष (दे १।३२) । अंगोहली-१ देश-स्नान, शरीर को पोंछना, हाथ-मुंह आदि धोना
(नंदीटि पृ १३४)। अंगोहलेऊण-देश-स्नान कराकर-'अंगोहलेऊण दारगं पेसेइ'
(व्यभा १० टी प ५२) । अंघोलि-देश-स्नान, शरीर को पोंछना, हाथ-मुंह आदि धोना
(आवचू १ पृ ५४५)। अंचित-दुभिक्ष-अंचितं नाम दुभिक्षम्' (आवटि प ५३)। अंचिय-१ नाट्य का एक प्रकार-'नटें चउव्विहं-अंचियं रिभियं आरभडं
भसोलं ति' (निचू ४ पृ २) । २ दुभिक्ष (निचू २ पृ ११६) । अंछण-विस्तार, फैलाव (निचू २ पृ २२३) । अंछणय-विस्तार, फैलाव (निभा १५२६)। अंछणिका-रज्जु-विशेष (अंवि पृ ११५) । अंछिय-आकृष्ट, खींचा हुआ (प्र २२६; दे १११४) । अंजणइसिआ-तमाल का वृक्ष (दे ११३७) । अंजणई-वल्ली-विशेष (प्रज्ञा ११४०।५) । अंजणईस-तमाल का वृक्ष (दे ११३७) । अंजणिआ-तमाल का वृक्ष (दे ११३७)। अंजणी-१ आभूषण-विशेष (अंवि पृ १८३) । २. भांड-विशेष
(अंवि पृ २६०) । अंजणेकसक-वनस्पति-विशेष (अंवि पृ ७०)। अंजस-ऋतु (दे १।१४)। अंडअ-मत्स्य (दे १११६) । अंतरिज्ज-कटीसूत्र, करधनी (दे ११३५) ।
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