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________________ देशी शब्दकोश जुयक – पृथक्, अलग (दअचू पृ २५) । जुयग – पृथक् - 'तओ जुयगं घरं कथं ' ( आवहाटी २ पृ २०६ ) । जुरुमिल्ल - गहन, निविड ( दे ३३४७ ) । जुरुमिल्लय – गहन, गहरा (दे ३।४७ पा) । जुवय - चन्द्र-प्रभा और संध्या - प्रभा का मिश्रण - सन्ध्याप्रभा चन्द्रप्रभा च यद् युगपद् भवतस्तत् जुयगोत्ति भणितम् ' ( स्थाटी प ४५१ ) । जुहार -- जयकार, जुहार, नमस्कार ( आवहाटी १ पृ ६७ ) । जुहार (राज) । जूअअ - चातक (दे ३।४७) । जूयत - संध्या और चन्द्रमा की प्रभा का मिश्रण (स्था १०/२० पा ) । जूरण - खेदन ( सू २२।३१) | जूरणया - खेदन (भ १२।५४) । जूरावणया --- खेदापन (भ ३ । १४५ ) । जूरिय - - खिन्न (पा ५७५)। जूरुम्मिलय – गहन (दे ३।४७ वृ) । १६५. जूवय - १ ऐसा स्थान जिसके चारों ओर पानी हो - 'जूवय णाम विट्ठ (वीउं) पाणियपरिक्खित्तं' (निचू ४ पृ ५४) । २ द्यूतकार ( कु पृ १७२ ) । जूह - कांजी, मांड या मूंग का पानी - 'जूहं च कांजिकं, तंदुलोदगं मुद्गरसो वा जूहं भणति' (निचू ३ पृ १०३ ) । जे - १ पाद-पूर्ति में प्रयुक्त अव्यय ( उ २२।२१) २ अवधारण सूचक अव्यय । जेमण - मीठा भोजन (ओटी प ४९ ) । जेमणय- दक्षिण अंग, दाहिना हाथ आदि (दे ३।४८ ) । जोअ - १ युगल (ज्ञाटी प ४७ ) । २ चन्द्र, चांद (दे ३।४८ ) | जोअण- आंख, लोचन ( दे ३ । ५० ) । जोइंगण - कीट - विशेष, इन्द्रगोप (दे ३५० ) । जोइक्ख - - १ दीप - जोइक्खं तह छाइल्लयं च दीवं मुणेज्जाहि' ( व्यभा ७ टी प ६२ ) - ' जो इक्खशब्दः देश्यो दीपे वर्तते' ( प्रसाटी प ४६ ; दे ३।४९ ) । २ प्रदीप आदि का प्रकाश (ओनि ६५४ ) । जोइज्जमाण - दृष्ट ( अनु ३१५२ ) । जोइय - १ दृष्ट, देखा हुआ (आवचू १ पृ ५२८ ) । २ खद्योत ( दे ३।५० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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