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देशी शब्दकोश
जालगद्दह-रोग-विशेष-'ए यस्स हत्यो पादो वा जालगद्दहमादिणा सडितो'
(निचू ३ पृ ४४८)। जालघडिआ-अट्टालिका, अटारी (दे ३।४६ ) । जाली--सघन झाड़ी (पा ८७६) । जावइ-१ कन्द-विशेष (उ ३६।६७) । २ गुच्छ वनस्पति-विशेष
(प्रज्ञा ११३७।५)। जावति-वृक्ष-विशेष (भ २२।१)। जाहे-यदा, जब (उशाटी प १४८) । जिघिअ-सूंघा हुआ (पा ४६७) । जिडह-गेंद-'जिंडहगेड्डिआइरमण' (प्रसा ४३५)। जिंडुह-कन्दुक (प्रसा ४३५) । जिग्घिअ-सूंघा हुआ (दे ३।४६) । जिण्णोब्भवा-दूब, दूर्वा (दे ३३४६)। जिमिअ-भुक्त (बृभा ३६६५)। जिम्ह—मंद-'जिम्हीभवंति उदया कम्माणं' (बृभा १२३)। जीण--१ जीन, अश्व की पोठ पर बिछाया जाने वाला ऊनमय या चर्ममय
आसन (प्रसाटी प १६१) । जीणपोस (फारसी) । २ ऊन का बना
वस्त्र-विशेष (भटी पृ ११५२)। जीवयमई—अन्य मृगों को आकर्षित करने के लिए शिकारी द्वारा बनाई गई
कृत्रिम मृगी, व्याधमृगी (दे ३३४६) । जुअल--तरुण (दे ३।४७)। जुअलिअ-द्विगुणित, दुगुना (दे ३।४७) ।। जंगलिका-त्रीन्द्रिय प्राणी-विशेष (अंवि पृ २६७) । जंगित—जाति, कर्म या शरीर से हीन (पंक २०१) । जुगिय-१ खंडित (पिनि ४४९) । २ जाति, कर्म या शरीर से हीन ।
३ दूषित । जंजिय-बुभुक्षित, भूखा (ज्ञाटी प ७३)। जुजुरुड-अपरिग्रही, परिग्रहरहित (दे ३।४७) । जुक्कार-प्रणाम (बृटी पृ५३) । जुगय-पृथक् (दहाटी प ४७) । जण्ण-विदग्ध, दक्ष (दे ३।४७)।
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