________________
१६०
देशी शब्दकोश
जंकयसुकअ-अल्प उपकार से अधीन होने वाला (दे ३।४५)। जंगय-शि विका-विशेष-'अवरे जपाणेसु, अवरे जंगएसु' (कु पृ २४) । जंगल---जंगल, वन (उसुटी प २३७) । जंगलिक-जंगली (अंवि पृ २२६) । जंगा-गोचर भूमी, पशुओं के चरने की भूमि (दे ३।४०)। जंगोल-विषापहार विद्या, विषविघातक तन्त्र (विपा ११७१५)। जंघाछेअ—चौराहा (दे ३१४३) । जंघामअ-तीव्र गति से चलने वाला (दे ३।४२) । जंघालुअ-तीव्र गति से चलने वाला (दे ३।४२) । जंपण-१ अकीर्ति । २ मुंह (दे ३३५१) । जंपिच्छअ-जिसको देखे उसी को चाहनेवाला (दे ३।४४ वृ)। जंपुलिग--कुल्माष-विशेष-'जंपुलिगादि कुम्मासा' (दअचू पृ १२४) । जंपेच्छिरमग्गिर-जो-जो देखता है, उसी की मांग करनेवाला (दे ३।४४) । जंबाल-१ जरायु, गर्भवेष्टन चर्म (स्था २।३६६) । २ सेवाल
(दे ३।४२ वृ)। जंबालय—सेवाल (दे ३।४२) । जंबुअ-१ वेतसवृक्ष, बेंत । २ पश्चिम दिक्पाल (दे ३।५२) । जंबुल-१ वानीर वृक्ष, बेंत (दे ३।४१) । २ मदिरा-पात्र-'जंबुलं मद्य
भाजनमिति सातवाहनः' (वृ)। जंबुल्ल-वाचाल (पा १११)। जंबूका-करधनी (अंवि पृ ७१)। जंबलय-पात्र-विशेष (उपा ७७)। जंभ-तुष, भूसा (ति ६६१; दे ३।४०) । जभणअ-इच्छानुसार बोलने वाला, स्वच्छंदभाषी (दे ३।४४) । जंभणभण-स्वच्छंदभाषी (दे ३।४४ वृ)। जंभल-जड, मन्द (दे ३१४१) । जक्खरत्ती-यक्षरात्री, दीवाली (दे ३।४३) । जग-जीव-विरते गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा' (सू १।११।३३)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org