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देशी शब्दकोश
कवल्ल-१ तवा-'तत्तंसि अयकवल्लंसि उदयबिंदुं पक्खिवेज्जा'
(भ ३।१४८) । २ कडाही (सू १।५।१५) । कवल्लि-कडाह-'डझंतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूयाए'
(सं ११६)। कवल्ली-१ पकाने का भाजन-विशेष (विपा १।३।२) ।
२ कडाह (अंवि पृ ७२) । कवल्लुय--कडाही (ति ६५१) । कवल्लूर- कडाही (सूचू २ पृ ४४४)। कवास-अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता (दे २१५)। कविचिया–पात्र-विशेष, कलाचिका (भ ११३१५६) । कविड-घर का पिछला आंगन (दे २।६)। कविल----कुत्ता (दे २१६)-'अलसः! ण लज्जसि कविलोव्व कडसीए' (वृ)। कविल्ली-पात्र-विशेष (अनुद्वामटी प १४६) । कविल्लय-कडाही (आचू पृ ३७३) । कविस–मद्य, मदिरा (दे २।२) । कविसा-अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता (दे २।५) । कवेली--पात्र-विशेष (अनुद्वाचू पृ ५४)। कवेल्लक-लोहे का पात्र-विशेष (भ ३।४८) । कवेल्लुअ-खपरैल (स्था ८।१०) । कवेल्लुग-१ तवा (जंबू २११४१) । २ खपरैल, खापड़
(आवचू २ पृ २३) । कवेल्लुय--कडाही (जंबूटी प २२)। कवोडी—कांवर (निचू ३ पृ २१३)। कव्व--१ पानी उलीचने का पात्र-विशेष-'उत्तिगादिणावाए चिट्ठमुदगं ___ अण्णयरेण कव्वादिणा उस्सिचणएण उस्सिचइ' (निचू ४ पृ २०६)।
२ मांस। कव्वय---काष्ठपात्र-'कव्वयं तं पि कट्ठमयं (पत्तं)' (निचू ३ पृ ३४३) । कव्वाड-१ ठेके पर भूमि खोदने वाला (स्था ४।१४७ पा)। २ दाहिना
हाथ (दे २।१०)। कव्वाल---१ ठेके पर भूमि खोदने वाला-'कव्वालो खितिखणतो उडमादी'
(निचू ३ पृ २७३) । २ कर्म-स्थान, प्रवृत्ति का स्थान । ३ घर (दे २०५२)।
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