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देशी शब्दकोश उअचिय-परिमित (औपटी पृ ३२) । उअट्टी-नीवी, स्त्री का कटिवस्त्र या कटिवस्त्र के दी जाने वाली रस्सी की
___ गांठ, नाडा (नारा) (पा ४६१)। उअत्त-निष्क्रांत, अतिक्रांत-'जाहे जलं वेलाए उअत्तं भवति'
(निचू ३ पृ १४०)। उअपोत-आकीर्ण, व्याप्त-'उअपोते देशीपदत्वाद् आकीर्णे'
(बृटी पृ८८६)। उअरी-शाकिनी, देवी-विशेष (दे ११६८)-'उछयवाडे मज्जारिरूवयाओ
___भमन्ति उअरीओ' (वृ)। उअह--देखो-'उअह त्ति पेच्छहत्थे' (दे श६८) । उअहारी-दोहन करने वाली स्त्री (दे १११०८) । उआलि-अवतंस, शिरोभूषण (दे ११६०) । उइंतण-उत्तरीय वस्त्र, चादर (दे १११०३)। उगुणी-वनस्पति-विशेष (अंवि पृ ७०) । उंचहिआ-चक्रधारा (दे १११०६)। उंछ--१ गॉ, जुगुप्सनीय (सूटी १ प १०८) । २ छीपा, कपड़ों को छापने
वाला (पा ७७०)। उंछय-वस्त्र छापने का काम करने वाला (दे ११९८) । उंजण--उत्सेचन (दजिचू पृ १५६) । उंड--१ मुख-'देसीवयणतो उंडं-मुहं' (अनुद्वाचू पृ १३)। २ ऊंडा, गहरा
(औपटी पृ ५; दे ११८५)-'खणिआ उड्डेहि कूवया य अइउंडा' (वृ)। उंडअ-पांव में पिण्डरूप में लग जाए उतना गहरा कीचड़ (ओभा ३३)
--'उंडका-पिण्डकास्तद्रूपो यो भवति, पादयोर्यः पिण्डरूपतया लगति स पिण्डक इत्यर्थः' (टी प २६)। उंडे-मिट्टी, गोबर
(कन्नड़)। उंडग-१ स्थण्डिल (द ४।२३)। २ पिण्ड, लोथड़ा-'बालाई मंस उंडग
मज्जाराई विराहेज्जा' (ओभा २४६) । उंडणाही-अंतरिक्ष में होने वाले क्षुद्र जंतु-'अंतलिक्खेसु संताणका उंडणाही
घुक्कभरधा वा वि विण्णेया' (अंवि पृ २२६) । उंडय--मांसपिण्ड-'तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ'
(विपा ११५।१४)। उंडरुक्क-मुंह से वृषभ की भांति शब्द करना-'देसीवयणतो उंडं-मुहं तेण
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