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३३४ : परिशिष्ट २ दुक्ख (दुःख)
कर्म दुःख का कारण है, अत: कारण में कार्य का उपचार कर दुःख और कर्म- इन दोनों को एकार्थक माना है।' बुक्खण (दुःखन)
पीड़ा अनेक रूपों में अभिव्यक्त होती है। यहां 'दुक्खण' आदि शब्द पीड़ा की विभिन्न भूमिक'ओं के बोधक हैं-२ दुःख-इष्ट के वियोग से उत्पन्न दुःख । जूरण-झरना, शारीरिक कमजोरी से समुद्भूत पीड़ा। शोचन-शोक व दीनता से उत्पन्न दुःख । तेपन-अश्रुविमोचन । पिट्टण-लकड़ी आदि से पीटना ।
परितापन-शारीरिक, मानसिक पीड़ा देना। बुट्ठ (दुष्ट)
दुर्बोध्य व्यक्ति के पर्याय में तीन शब्दों का उल्लेख है। इनकी अर्थ परम्परा इस प्रकार है१. दुष्ट–जो दुष्टता करता रहता है । २. मूढ-गुण-दोष के विवेक से विकल ।
३. व्युद्ग्राहित—कदाग्रही द्वारा भिड़काया हुआ । बुद्ध (दुग्ध)
दुद्ध शब्द के पर्याय में ५ शब्दों का उल्लेख है। इनमें कुछ शब्द दूध के लिए प्रयुक्त प्रसिद्ध शब्द हैं। लेकिन 'पीलु' और 'वालु' शब्द दूध के लिए प्रयुक्त देशी शब्द हैं। पीलु और वालु शब्द प्रान्तीय भाषा से आया प्रतीत होता है । कन्नड में दूध को 'हालु' कहते हैं। तमिल में दूध को 'पाल' कहते हैं, अतः पीलु और वालु शब्द संभवतः इन्ही शब्दों के
कोई रूप होने चाहिएं। दुम (द्रुम)
___ 'दुम' शब्द के प्रायः सभी पर्याय वृक्ष के स्पष्ट वाचक हैं लेकिन १. दश्रुच पृ २८ । २. भटी प २७४ ।
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