________________
परिशिष्ट २ . ३३३
१. परितन्त-मानसिक व शारीरिक रूप से दुःखी। २. उत्कर्षित-दूसरों के द्वारा तिरस्कृत । ३. चिन्ताध्यानपर-आर्त्त-रौद्र ध्यान में मग्न । ४. अकृतार्थ-जिसका प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।
५. शोकात-जो शोक से सदा दुःखी रहता है । दीव (दीप)
'दीव' शब्द के पर्याय में १३ शब्दों का उल्लेख है। सभी शब्द विविध प्रकार की अग्नियां तथा उसके स्थान के वाचक हैं। कुछ शब्दों का अर्थबोध इस प्रकार है१. दीपक-दीया। २. चुडली-उल्का, जलती हुई लकड़ी (दे)। ३. चुल्लक-बड़ा चूल्हा (दे)। ४. विद्य त्-बिजली, अग्नि । ५. आतप-प्रकाश (प्रकाश अग्नि से पैदा होता है अतः कारण में कार्य
के उपचार से यह 'दीव' शब्द का एकार्थक है।) ६. चुल्लि–छोटा चूल्हा (दे)।
७. फुफक-करीषाग्नि (दे)। दीविय (द्वीपिन्) . 'दीविय' आदि सभी शब्द व्याघ्र की विभिन्न जातियों के वाचक
हैं । वर्ण, आकार के आधार पर इनका भेद किया गया है। दोहसक्कुलिका (दीर्घशष्कुलिका)
'दीहसक्कुलिका' आदि शब्द दिवाली और होली आदि पर्वो के अवसर पर बनायी जाने वाली मिठाई के वाचक हैं। यह गुड़ से बनायी जाती थी। आज भी राजस्थान में इन पर्यों पर खजली बनाने का रिवाज है । मीठी खाद्य वस्तु के अर्थ में प्रज्ञापना में 'भिसकंदय' शब्द का उल्लेख है।' जो 'भिसखंटक का संवादी प्रतीत होता है। खाखट्टिका, खोरक, दीवालिका, दसीरिका, मत्थकत आदि शब्द इसी अर्थ में देशीपद हैं। १. प्रज्ञाटी प ५३३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org